प्रतापरुद्रयशोभूषण का समीक्षात्मक अध्ययन | Prataparudrayashobhooshan Ka Samikshatmak Adhyayan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
99 MB
कुल पष्ठ :
362
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ला वास क मा
प्रारम्म के छगमम १४०० वषम तक साहित्यशास्त्र का केन्द्र कश्मीर
राज्य था 1 इस्कें फचात गुजरात का अनहिठप्टुटन राज्य और पर्व का बह्म
राज्य साहित्यिक प्रत्तियीं के केन्द्र बन । किन्तु १ वी-१४ वीं शता व्दी तक
साहित्यिक प्रवचियीं का कैन्द्र दक्षिण मारत में फुच गया । दक्षिण मात
के आान्य्र प्रदेश में जलडुन्कार सम्बन्धी बौ साहित्य फ्राश मे जाया है उस
विद्यानाध के * फ्रा परु द्रयशीमुष्णण * मुन्थ का नामि सर्वौपरि है ।
'चविद्यानाध का समय -
` प्रता परद्रयशौमृषणण ˆ गृन्थके प्रणता विदानाथ वाउगल के
रसना प्रतापरद्देव छितीय के आश्रय में थे | विदानाथ ने अपन गुन्थ मैं इन्हीं
प्रता परूद्र की प्रशस्ति में उद्ाण दिये है |
प्रता पएद्रदेव ख रेति सिकि व्यक्तित्व ४ जत: इन्कै राज्काछ
कै 'मिघीरित करन में कौई कठिना कहै ! गजा प्रलापरएदक्े पतिका
नाम महदिव तथा माता का नाम मुन्मुढीौ अथवा मुम्महबा था । प्रता पर द्र
काकतीय वश कै राजा थे । काकलि देवी का मकत हौभ के कारण हस वश की
काकतीय कहते थे ।. त्रिलिग अथवा आन्त्र प्रदेश के अन्तगंत स्कशिला उनकी
सजधघानी थी प्रा पद कितीय १२ ६४ ईं? में अपनी नानी रूदाम्बा के
बाद सिंहासनाहट़ हुर थे । प्रा परढ़ की नानी फद्राम्बा को उनके पति
गणपति ने अपनी उत्तर धिका पिणी नियुक्त किया था तथा उन्हें पुरुष जैसा
नाम रूद्रदिव थी दिया था । काकतीयौ के यादवों तथा अन्य राज्युली से जौ
युद्धा दि होते पएहैं है उनके छिखित क्णानसि प्रा परद्र का राज्यकाल १२६० से
९३ २६ अथवा १२६१ से १३२३ ई० निधारित हैत है । इनके शिछाठेखों की
॥ 09. 1.8 1 0 1 चेन दकि का यकः सि
१- दद्षिणमाएरत का इतिहास - डा० क ₹० नीठ्कठशास्त्री, पऽ २२०
User Reviews
No Reviews | Add Yours...