कुमकुमे भाग - 1 | Kumakume Bhag - 1

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१ # 1 ६}. {} .॥) 11 1}... 1} ॥। {.। हता 1} - 81 1 8.1. _ -।-1. 1 2. | भाभी जान बोलीं--''आऔओऔर क्या, बल्कि घी ओर शक्कर वगररह रोज के अन्दाज़ से भी कम खचं करेंगे ।” ही नै वालिदा साहेवा ने कहा--'यह «अतलब नहीं हैरी प्कुसनीप में कमी 'करो. 1. मतलब यह है, कि हर ची ङ्ग से कचं हो; जाया मैं कर^सल चूँ कि दोनों .खूब समझ गई. कि.पूज़ुनीया समन (सास ) का क्या मतलब है । लेहांज़ा .खू4 सर हिलाये ओर खूब सममीं ! वालिद साहब ने मेरी तरफ़ देख कर कहा--“और, मुर्गियों का ख्याल रखना; उसकी दुम पर दवा लगवाने रोज़ाना याद कर के भिजवा देना 1” „ “^ है मैने कहा- बहत अच्छा । दर-असल एक मुगी की दुम किसी नालायक़ बिल्ली ने उखाड़ लो थी, लेकिन चूँ कि मुर्गी साहेबा कुछ तो स्वयं मकगड़ा-फ्साद की शोक़ीन थीं और कुछ मुरा-साहेबान की इस तरह चहेती हो रही थीं, कि उनकी दुम बढ़ने हो में नहीं आती थी और नौबत यहाँ तक पहुंच गई थी, कि ठीक दुम पर दवा लग रही थी । „= सारांश यह, कि वालिदा साहेबा ने नक़द रक़म भी बहुओं को घर के खर्च के लिये सोंपी और रुखसत होने लगीं । चलते वक्त श्रीमतीजी झऔर भाभी जान, दोनों को वालिदा साहेबा ने गले से लगाया, तो दोनों की ह्‌ [लत इस सदम (वियोग) की वजह से रोर हो रही थी ! मगर किस सफ़ाइ से भाभी जान वालिदा साहेबा के कन्धे के उपर से भाई साहब से नज़र चार होते ही हँसी हैं, कि किसी को पता तक न चला । वालिद्‌ साहब और वालिदा साहेबा बीस रोज़ के लिए घर-बार हम लोगों पर छोड़ कर जा रहे थे, वल्लाह क्या कहना है हमारी खुशियों का / छ । रात के साढ़े बारह बजे होंगे, जो हम अपने पूजनीय वालदैन को स्टेशन से रुख्सत करके वापस श्राए ! अब वापस जो श्राए हैं, तो तबीयत बारा-बारां हो गई; क्योकि आपसे ठीक श्रजै करते हैं, कि नाश्ता तय्यार था ! जी.हाँ नाश्ता, कोई एक बजे रात के !! कुछ नहीं, सिर्फ़ एक-एक प्याली चाय, कुछ मक्खन, एक-एक टोस्ट और एक-एक अणडा !




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