विंध्याटवी के अंचल में | Vindhyatavi Ke Anchal Men
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
122
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१८ विंध्याटवी के अचल में
भाज हिंदुओं के अंतगंत प्रचलित देवतागण॒ भी श्रनार्यो के देवता
हैं । यद सब सहवास से होता श्राया है । इपलिये
विद्वान् लोग भारत को भिन्नभित्र संस्कृतियों का
संगम-स्थल कहते हैं । छान-बीन करने पर ये भेद
साफ़ दिखलाई देते है । उदाहरणाथ--व दिक यों के मिलन का स्थल
यज्ञ था, भ्रौर् अवं दिकं का तीर्थं । तीथवस्ु यह वेदबाह्य है। इसी कर्ण
वेद-विरोधी मत को तैर्थिक कहते हैं । गंगा-यमुना का माहात्म्प ्ार्यो के
श्रागमन के पूर्व का है । नदी, दक्ष, जीव-जंतु के पूजक अनाय थे, श्रौर
उसी के स्मारक उनके कुलो के नाम भी जीव-जंतु, त्त -लता, नदी,
पहाड़ों पर पाए जाते हैं । व्योहदारों को लीजिए--होलिकोत्सव (वसंतोत्सव)
अनाय-त्योहार है, इसलिये उस्रका नाम शूद्रोत्सव रख सकते हैं। विवोह
के ऋ्वसर पर सिंदूर-दान का महत्त्व अनाय-जातियों में पाया जाता है ।
कई बातें खोज करने से मिल जाती हैं । इससे यह स्पष्ट है कि हमारे
बहुतेरे देवता, तोथ, उत्सवादि श्रनारय हैं, श्र विजातियों ने भी उन्हें
ब्प्रपनाया
कलांतर में आय श्रौर शनन।य-संघषं शात होते गए । सभी जातियाँ
भारत को अपनी मातृभूमि समककर रहने लगीं । फल यह हुश्रा कि
ध्मार्याने भी श्रनार्यां की कई बातें अपने यहाँ ग्यव्रहूत कीं । प्रकृति के
नियमानुसार सामाजिक श्दान-प्रदान भी होता रहा | बहुत-सी अनायं-
जातियां हदु खो मे समाविष्ट दा गड्, ओर् जिन्होंने अपनी संस्कृति की रक्ता
करने की कटूरता दिखलाई, वे शमनाय आज भी जंगल में मंगल करते
हैं। पुराण-काल में ( इसा से ५ सदी पूव ) भारत विंध्य-पव त द्वारा दो
भागों में विभाजित आय श्रौर द्रविड़ ह्र), उसी का नाम उत्तरापथ श्रीर
दक्षिणापथ है । यद्यपि समस्त भारत काएक ही राष्टू-घमे था, तथापि
रस्म-रिवाज्ञ, खान-पान, बोल-चाल भिन्न-भिन्न था । उन्तर-भारत में श्राय-
संस्कृति शुद्ध न रददी--उसमें भी द्रंविड़ों की चछंटादेखने मेँ श्रतीदहै,
भिन्न-भिन्न संस्क-
तियों का संगम
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