ब्रजभाषा का व्याकरण | Brajabhasha Ka Vyakaran
श्रेणी : भाषा / Language
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
30 MB
कुल पष्ठ :
304
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)हम सब लोग आम के मीठे फलों का रसास्वराद लेते हैं ।
इसके लिए यह जरूरी नहीं होता कि पहले दम धनस्पति-विज्ञान
का अनुशीक्तन करें और यह जानें कि आम की गुखली जव
जमीन में दबा दी जाती है, तब वह किस तरह और क्यों एक
अंकुर देती है, वह अंकुर किस तरह ब्रक्त रूप में परिणत हो
जाता है। फिर उस पर फूल किस प्रक्रिया से किस तरह
आते हैं । वे फूल केसे फल बन जाते हैं। उन छोटे फलों में
पहले कड़वा रस क्यों होता है, फिर खट्टा और बाद में मीटा
केसे हो जाता है ! इन सब बातों के जाने बिना भी हम मजे
से मीठे फन्नों का स्वाद लेते हैं; ठीक उसी तरह, जिस तरह
एक वनस्यति-विज्ञान का पंडित। उसके ओर हमारे रसास्वाद
में कोड अन्तर नहीं; इसमें सन्देह नहीं । परन्तु वह उस मीठे
फन के पूर्ण इतिहास से भी परिचित है. । जब मीठा फल उसके
सामने आता है, तब उसके सामने ये सब बातें भी आ जाती
हैं, जो हमें नहीं मालूम । उस जानकारी का जो मजा उसे
आता है, उससे हम कोसों दूर हैं। यद्दी हम दोनों में अन्तर है।
इसी तरह एक आदमी तो ऐसा है, जो अपनी भाषा का
व्यवहार ही जनता हे, उसके विवेचन या व्याकरण से शून्य
है। दूसरा उस भाषा के व्यवहार के साथ-साथ उसके पूण
विवेचन का भी आनन्द लेता है, व्याकरणज्ञ भी है । तो, इस
दूसरे व्यक्ति में कुछ विशेषता हुइ कि नहीं ?
सारांश यह कि व्याकरण भाषा के विवेचन का नाम है।
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