परिवर्तन | Parivartan

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Parivartan by श्रीयुत सुदर्शन - Shriyut Sudarshan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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८ परिवतेन मेरो माँ जीती रहती ते मुभे यह दुदिन देखना न पडता । मैं कंवल परदेसी श्रौर अनाथही न था, प्रत्युत जातीयता कं धन सेभीशून्यथा। मुभे ज्ञान ही न था, कि में भारतीय हूँ । इसी प्रकार अठारह वष गुज़र गये, झ्लौर में कालिज में भरती हुआ । उस समय मुभे पहली बार मालूम हुआ कि में भारतीय हूँ। ऐ भाई! सुभे माफ़ करना, परन्तु शूठ न बालूंगा । मुभ इससे गहरी वेदना पर्हची । भारत-सम्बन्धी मेरे विचार अच्छे नथे। मैं अपनी आँखें में आप गिर गया। प्रायः सोचता था, मैं कैसा श्रभागा हूँ, कि भारतीय माता-पिता की संतान हूँ। स्वण पर पीतल का धोखा होने लगा । में अपनी जाति किसी पर प्रकट न करता था ।. उसे छिपा छिपा कर रखता था, जेसे सफूद वख्र पर धब्बा लग गया हो । श्रव उन दिनों को याद करता हूँ तो शरीर काँप जाता है, श्रैर सिर लजा से ऊँचा नहीं उठता । परन्तु उस समय यह ज्ञान न था। जब कभी विचार ता, कि में भारतीय हूँ तो कलेजा फट जाता था, जेसे किसी कुरूप मनुष्य कं सामने दर्षण श्रा जाये तो बह लज्ितहाजातारै- मैं ्रपनानाम हैरिखलन कापर ही बताता था । हस्तान्तर करता ता प्र. 0०५०५०० लिखता । मेर मिर्च में से किसी को पता न था कि में भारतीय हूँ, न में यह प्रकट करना चाहता था । मेरे खयाल मे भारतोय हाना शरोर जरायम- पशा हाना एकी बात थी । जब कभी कोई भा रतोय जेन्टलमेन हमारो दुकान पर आ जाता तो में उसकी श्रार धूर धूर कर




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