चिन्ता छोड़ो सुख से जियो | Chinta Chhodo Sukha Se Jiyo

Chinta Chhodo Sukha Se Jiyo by वेद प्रकाश सोनी - Ved Prakash Soni

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कहा जाए तो वे चिंढ़ेगे, परन्तु असलियत यही है कि वे अवश्य किसी-न-किसी अन्यविश्वास के शिकार है, उसमें फसे हुए हैं। उनके अवचेतन मन में कोई-न-कोई भय सदा ही कुण्डली मारे बैठा रहता है, जो उन्हें समय-असमय डराता रहता है, 'कहीं ऐसा न हो जाय, कहीं वैसा न हो जाय!” © पा ~. 9 फविक शशि के यः न 2 4 न 4 न की. प्रिट 45 ् 2 बाय मय & मि = € ~ द्‌ ५ ९ ५. 1 ८4 ९2५४ ९. ५) सिरर कव वेह क अपशु के भव को पलकर कैठे है। मैं एक प्रतिभाधान युवती को जानता हू यह एक बार एक सार्वजनिक समारोह में असफल रह गई थी, क्योंकि हुसमें उसकी आवाज ने जवाब दे दिया। न जाने क्या अदृश्य प्रतिक्रिया हुई कि वह उस संगीत समारोह में सफलता न पा सकी और उसके बाद उसने सगीत का प्रदर्शन करना ही बन्द कर दिया! उसे अनेक बार प्रोत्साहित किया गया, परन्तु वह राजी न हुई। एक बार बहुत साहस करके वह एक सार्वजनिक प्रदर्शन के लिए गई थी, परन्तु सगीत की उसी घुन पर आकर रुक गई। तीसरी बार भी वह असफल रही। इस प्रकार इन असफलताओं से श्रबराक्रर उसने सगीत को सदा के लिए त्याग देने का निश्चय किया। उसने सगीत के क्षेत्र से पृथक होने का निर्णय कर तिया ओर अलग हो गर्‌। सौभाग्य से उनी न उदे कं न्यकिति मिला जौ उसे जानता था। उसने एसे सुद्ाया कि उसकी इस अमफलता का कारण शारीरिक नहीं, वरनु मानसिक है। उस व्यक्ति ने उसे सपझाया कि यदि बाद अपनी इच्छशक्ति कौ द करे तो वह अपनी मानसिकं कठिनाई पर विजय पा सकती है और अपने कार्य में सफल हो सकती है। वह युवती एक विशेषज्ञ डॉक्टर के पास गई । इक्टिर ने उसका मुआयना किया, उसके स्वर-सबधी अगो का परीक्षणं किया : डॉक्टर ने उसे बताया कि उसे किसी प्रकार का शारीरिक कष्ट नहीं । उससे सम्बन्धित शिक्षक मे भी बताया कि उसका स्वरालाप निर्दोष है, उसमें कोई चिन्ता छोड़ो सुख से जियो (1 13




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