स्वामी रामतीर्थ भाग - 19 | Swami Ramatirth Bhag - 19

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Swami Ramatirth Bhag - 19  by स्वामी रामतीर्थ - Swami Ramtirth

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सव्यक! माभ. ४ को अपने श्रन्तः करों में अंकित करवा लेन का, उस सदा- चार | घम ) रूप शर को श्रपनी हस्ती २ चिित करवाने या गादवा लने का, जब समय झाता हे, तब व डंक वा डंक का चदना नहां सह सकते; तब वे या श्रागा-पीछा करने जगत हैं इक वस्तु ता में चाहता हूं. पर दान न दूंगा । ”' इश्वराजुभव शोर सत्य को प्राप्त होने के लिए, तुस्हारी प्यारा स प्यारे कामनायं झोर इच्छायें आर-पार छुदी जायगा,; तुम्द झपनी प्रियतम दासनाश्चो ओर शझ्रास क्तियाँ का काटना होगा, तुम्ह अपने सकल प्यारे झन्ध विश्वास झार पतक्तपाता को मिटा देना होगा, तु्हें अपनी सब पूवे कल्पत कट्पनाश्चा को काट कर फेंक देना होगा । नाच शोर तुच्छं बनान वाली सब कद झ तुस्दे झपना पड़ छुटाना होगा, तुस्हें श्रपन को पचिन्न करना पड़गा । विशुद्धता, विशुद्धता । बिना दाम दिये तुम ईश्वर को नहीं पा सकते, तुम अपन जन्म जात स्वत्व को लाभ नहीं कर सकते । शुद्ध हृदय वाले घन्य हैं, क्योकि उन्हें परमेश्वर क्‌ दशेन होगे । ओर हुदय की बिमलता क्या वस्तु हू ? केवल वेवाहिक पापा स बचाने दी का नाम हदय की शुद्धता नहीं हे । ये तो उसके झथे हैं ही, किन्तु झोर भी बहुत कुछ उसके अथे हैं । आज य वचन तुम्हें चाहे रुचे या न रुचं, शन्तु पक दिन झावगा जब ये तुम्हें झवश्य ख्चमे, आज या कल तुस्दे इसी नतीजे पर पहुंचना ही पढ़ेंगा। नतीजा यह हे कि आसक्ति मात्र,चह चाहे आपको अपने घर से दो या घड़ी स,या झपन कु से हो, झथवा पिता, माता या बच्चे से;अझथात्‌ किसी चीज़ से भी झासक्ति,खत्य के जिज्ञाखु के लिए, इसी चाय पूण सत्य पर अधिकार पाने के इच्छुक क लिए, उतना दी नीच श्रोर दुबल बनाने वाली है जितना ? 9




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