भाषा - शिक्षण - विधि | Bhasha - Shikshan - Vidhi

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Bhasha - Shikshan - Vidhi  by उमाशंकर - Umashankar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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चः _ युग के पश्चात्‌ दूसरे युग के मानव-समुदाय तक पहुँचाती रह। है ओर झाज भी नित्यप्रति नवीन सुविधाजनक विचारं कौ सोन्दय- पुणे अभिव्यक्ति के लिये अनेक शब्द्-संकेतों की सषि करती रहती है। साथ ही भाषा के विकास ने ही मानव जीवन में इतनी न्याप- कता तथा अनेक्रूपता का प्रादुमभाँव किया है कि वह्‌ एक सीमित कतेत्रमे न रहकर विश्वके किसी कोने मे निवास कर सकता है आर अपनी भाषा द्वारा वहाँ के निवासियों की भाषा का ज्ञान सरलता- पूवंक प्राप्त कर जीवनन्यापन कर सकता है । क्या इस प्रकार का अन्तराष्रीय जीवन तथा ज्ञान-विज्ञान का अदान-परदान शारीरिक संकेतों द्वारा सम्भव होता ? क्या राज के च्नुसंघानों, छ्याविष्कों तथा नवीन मनोवैज्ञानिक विचारों को वह सवक्तेत्रीय प्रगति प्राप्त हो सकती जिसके बिना अज का मानव-जीवन असभ्य तथा अपूण होता ? + भाषा गूढृतम विषयों के विस्तृत, किन्तु निराकार ज्ञान को साकार बनाती है; उसकी असीमता को सीसिंत करती तथा लखसके प्रवधन परिष्करण तथा परिमाजन के किये दो मस्तिष्कों के बीच आवश्यक सम्बन्ध स्थापित करती हे चनौर विभिन्न प्रकार के स्थूल उपकरणा द्वारा इतनी निकटता उत्पन्न कर देती है. जिससे श्राज दम एक दूसरे की कठिनाइयों की थाह लगा सकने और उनका निराकरण करते तथा एक दूसरे की सहानुभूति प्राप्त करने में बहुत दूर तक सफल हो गये हैं। महात्मा गान्थी को हत्या भारत में: हुई; किन्तु पलक मारने , हो विश्व के कोने-कोने में वह दुःखद समचार पहुँच गया श्रोर सभी ' देशों के भण्डे नत हो गये। यह सब भाषा या उसके संकेतों की ही करामात है वह मौखिक हो या लिखित । शारीरिक या अन्य किसी भी प्रकार के संकेतों द्वारा यह निकटता तथा . व्यापकता दस-बीस यगो में भ स्थापित होती या नहीं इसमें सन्देह ही है ।




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