दयानन्द चरित | Dayanand Charit
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
21 MB
कुल पष्ठ :
323
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)के झनुवादककी भूमिका
ऋषि दृद्धानन्दका गोरव यही था कि उन्होंने बेदिक सूचक
ऊपर छाये हुए लाब्छन रूपी बादलोॉंको छिन्नमिश्न करके पुनः
उसक स्वच्छ 'झार जीवनप्रद प्रकाशकों प्रसारित किया । उन्होंने
बतलाया कि बेद ही सम्पूण ज्ञानके मूलख्रोत हैं । वे श्रपौरुषेय
हैं; उनमें केवल एक अजर; अमर, अविनाशी, सबंब्यापक,
सवशक्तिमान्, निराकार; निर्विकार परमेश्वरको उपासनाकी
ज्ञा दी गद ह । रत्नि, वायु श्रादि जिसको अन्य श्राधुनिक
भाष्यकार देवविशेष मानते ह ईश्वरक गोण नाम दै । हां प्रसङ्ख-
वश वे भातिक पदर्थोक लिये भी प्रयुक् दोतंरह; परन्तु ज्य
कहीं उन्हें उपास्य रूपसे वणेन किया गया है वहाँ इश्वरवाचक
षो टै । दव शब्दने जिननी भान्ति उत्पन्न की हं उतनी किसी अन्य
शब्दने नदौ की । झाधघुनिक भाष्यकारो ने देब शब्दसे हरेफ
स्थानम उपास्यदत्रके ही श्रथ ग्रहण किये श्रोर इस कारण वे
वे्दोमिं अनेरु देर्घेकी उपासना का विधान मनने लसः । ऋषि
दयानन्द इस कालफ स्यात् सबसे पदिते भ ष्य र है जिन्होनि
देव शब्दक सच्चे अर्थोक्रा प्रकाश किया । उन्होने बतलाया कि
देव किस योनिविशेषका नाम नदी हे । वह् सच पदार्थाक लिये
चाह जड़ हों या येतन, प्रयुक्त हो सकता है, यदि उनमें दवियीत-
कांतिविजीगीपा, श्ादि गुण पाये जात हें; झोर इसलिये बेदोंमे
किसी वस्वुको देवनाम से यभिदहित होते देखकर यष्ट नदा समभ
लेना चाहिये फि उस पदाथेको उपास्य माना गय! है । इसी प्रकार
पितर शब्दके अथं बयोषृद्ध क्ञानीके है न फि मृत पिनामहःदि के ।
यज्ञ शष्दके सम्बन्ध भी देव शब्दके समान ष्टी भ्रान्ति केली
हृ है। यक्नमिं पष्टबलिदानकी प्रथा षाममार्भिर्योके समयमे
भरतव म प्रचलित हर । ऐसा प्रतीत होता है कि भारतवषंसे
यह् प्रथा मूसा ादि मतोंने प्रदश की, इसलिये योरुपके
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