भारत में कृषि - सुधार | Bharat Men Krishi - Sudhar

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No Information available about पं दयाशंकर दुबे - Pt. Dyashankar Dube

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मारतम कृवि-सुघार पहला अध्याय रोटीका प्रश्न [ भारते अनाजकी आवश्यकताका परिमाण, भनाजको पूति, अनाजकी कमी, आघा पेट भोजन पानेवा छोंकी संख्या ] जीवनका मुख्य आघार अन्न हे । पेटकी भलीमभाँति पूजा किये बिना कोई भौ मनुष्य अपना काम अच्छी तरह नीं कर सकता । यदि कुछ दिनों तक अन्न न भरले तो मल्युका सामना करना पड़ता है | दुर्भिक्षके समयमे अन्नके अभावसे बहुतेरे मनुष्य अपने प्राणका बलिदान देते हुए दृष्टिगोचर होते हैं । परन्तु मामूछी समयमें भी यदि किसी मनुष्यको, कुछ दिनॉतक लगातार आधा पेट खानेको मिले तो घीरे घोरे उसकी शक्तियोंका हास होने छठगेगा और पक ने पक रोगका शिकार बनकर अन्तमें उसे अपने प्राणोंसे दाय घोना पढ़ गा | प्राचीनकाछमें भारतवासियोंको भन्नका कष्ट नहीं था । अंडोजोंके समयमें ही उनको आर्थिक दशा खराब हो गईं । सन्‌ १८७० में डाक्टर दादाभाई नौरोजीने अपनी पुश्तक “०८ छत एफ०संप 50 ५1७ 10 1एती2, पावर्टों एक्ड अनन्रिटिश रूढ़ इन इण्डिया” में




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