नष्ट नीड़ | Nast Need
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
14 MB
कुल पष्ठ :
250
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)नष्ट नीड १७
बह सिहर उठी, स्थाणुवत श्रचल वहीं जम-सी गई ।
““दादू 1 --देर के बाद उसने पुकारा ।
उस गभीर स्वर ने श्रीनाथ को चकित कर दिया । उसने नन्दा के
प्रति देख भर लिया ।
“'मनीश बाब्रु इतनी क्षराब पीते है, श्राप उन्हे क्यो नही रोकते
“पहले मनीश इतनी नही पीता था । बेरिस्टरी पढने विलायत बया
गया कि शराब पीना सीख गया । सचमुच लक्ष्मी मैं नही चाहता था कि
मनी विलायत जाए । क्या करू, बिना मां-बाप का लड़का था, जब वह
लिह् करने लगा तब “नाही' नहीं कर सका । वहाँ से लौटकर मेरा मनी
दारानी वन गया है 1
“तुम उन्हे रोको न दादू । '
“सोचता हं रोक ।
“तो 7 कौतुक से नन्दा ने पूदा।
“नही रोकं सकता लक्ष्मी, जी दुखता है । लगता है उसकी चाहु की,
पसन्द की चीजों से क्यो रोकृ” ? बच्चा दु खी हो जाएगा ।” श्रौर ज़रा
रुक कर कहने लगे श्रीनाथ--“यह जो भ्राज का मेरा धर, रहन-सहन
देख रही हो न, पहले एेसा नही था ! मैं एक पुराने विचार का श्रादमी
उसी ढँग से रहता था । परन्तु पीछे मनी की पसन्द के म्रनुसार सब कुछ
बदलना पडा । श्र बूढापे में मैं भी अप-टू-डेट बन बेठा ।” कह कर वृद्ध
जी खोल कर हँस पडे । हूंसी रुकी तब कहा--“इतना धन, सम्पत्ति मेरे
किस काम का ”* सब उसी का तो है न । मुक्ते किताबे चाहिएँ सो मेरी
यह लायब्र री है ही। जानती हो लक्ष्मी, मनी को किस स्थिति मे मैंने पाला ?'
इसके माता-पिता मनी को जन्म देकर ही टैज़ा के छिकार बने । वह
मेरा इकलौता बेटा था । बेटे भौर बहू के शोक से गृहिणी ने ऐसा पलग
पकडा कि वर्षो बीमार रही श्राई । वे फिर कहाँ उठी ? नौकरों पर क्या
भरोसा * मैं स्वय उनकी श्रौर मनी की सेवा किया करता । रात मे
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