नष्ट नीड़ | Nast Need

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Nast Need by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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नष्ट नीड १७ बह सिहर उठी, स्थाणुवत श्रचल वहीं जम-सी गई । ““दादू 1 --देर के बाद उसने पुकारा । उस गभीर स्वर ने श्रीनाथ को चकित कर दिया । उसने नन्दा के प्रति देख भर लिया । “'मनीश बाब्रु इतनी क्षराब पीते है, श्राप उन्हे क्यो नही रोकते “पहले मनीश इतनी नही पीता था । बेरिस्टरी पढने विलायत बया गया कि शराब पीना सीख गया । सचमुच लक्ष्मी मैं नही चाहता था कि मनी विलायत जाए । क्या करू, बिना मां-बाप का लड़का था, जब वह लिह्‌ करने लगा तब “नाही' नहीं कर सका । वहाँ से लौटकर मेरा मनी दारानी वन गया है 1 “तुम उन्हे रोको न दादू । ' “सोचता हं रोक । “तो 7 कौतुक से नन्दा ने पूदा। “नही रोकं सकता लक्ष्मी, जी दुखता है । लगता है उसकी चाहु की, पसन्द की चीजों से क्यो रोकृ” ? बच्चा दु खी हो जाएगा ।” श्रौर ज़रा रुक कर कहने लगे श्रीनाथ--“यह जो भ्राज का मेरा धर, रहन-सहन देख रही हो न, पहले एेसा नही था ! मैं एक पुराने विचार का श्रादमी उसी ढँग से रहता था । परन्तु पीछे मनी की पसन्द के म्रनुसार सब कुछ बदलना पडा । श्र बूढापे में मैं भी अप-टू-डेट बन बेठा ।” कह कर वृद्ध जी खोल कर हँस पडे । हूंसी रुकी तब कहा--“इतना धन, सम्पत्ति मेरे किस काम का ”* सब उसी का तो है न । मुक्ते किताबे चाहिएँ सो मेरी यह लायब्र री है ही। जानती हो लक्ष्मी, मनी को किस स्थिति मे मैंने पाला ?' इसके माता-पिता मनी को जन्म देकर ही टैज़ा के छिकार बने । वह मेरा इकलौता बेटा था । बेटे भौर बहू के शोक से गृहिणी ने ऐसा पलग पकडा कि वर्षो बीमार रही श्राई । वे फिर कहाँ उठी ? नौकरों पर क्या भरोसा * मैं स्वय उनकी श्रौर मनी की सेवा किया करता । रात मे 1)




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