विन्ध्य - भूमि | Vindhy Bhumi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रदेदा-परिचय अंक ] कारण यहाँ के निवासियो कौ पोलाक सीधी-सादी और सूती कपड़ों की होती हं । गावौ के मनुष्य घुटनों तक पहनी जानेवाली धोती और बन्डी पहनते ह । इसी प्रकार स्त्रियां मोटे सृत कौ धोती तथा कर्ती अथवा कतइया पहनती हं । अच्छे अवसरों पर धनी-मानी व्यक्ति बन्दा या कृर्ता, मिज अथवा चूड़ीदार पाजामा पहनते है। सिर पर साफा बाँघना जरूरी है, चाहे गरीब हो या अमीर । स्त्रियां भी बड़ अवसरों पर चुनरी, लहेंगा, चोली पहनती है। शूद्र वण की स्त्रियां अपने पैरो मे गहना नही पहनतं। । वे अपनी शोभा को बनाये रखने के लिए शरीर पर गुदना' गुदवाती ह। यही प्रथा परिगणित जातियो ममी है। गरीब व्यक्ति वर्षा के दिनों मे घास के 'मोइया' या कम्बल के “खोई' बनाकर पानी से रक्षा करते ह। पूर्वी भाग के व्यक्ति बास तथा पत्तों से टोप बनाकर पहनते हे । प्रदेश के मडलीय क्षेत्र तथा कुछ तहसीलों के क्षेत्र नवीन सभ्यता की ओर अब बहुत तेजी से बढ़ रहे हं। उच्च शिक्षा तथा उन्नतिणील वातावरण का प्रभाव भी लोगों पर पड़ रहा है, जिससे उनके रहन- सहन तथा वेश-भूषा में बहुत शीघ्यता से अन्तर आ रहा है और छाग नवीन सभ्यता की ओर बढ़ रहे हैं। शादी-विवाह की पद्धति सवर्णों मे प्रायः एक ही है। दुद्रों तथा परिगणित जाति मे विवाह की प्रथा भिन्न-भिन्न क्षेत्रो में विभिन्न प्रकार की हे और इसी प्रकार से खान-पान की प्रथाये भी भिन्न है। ज्यो-ज्यों दिक्षा का प्रचार हो रहा हं ओर्‌ व्यवहार- कददालता बढ़ रही है, त्यो-त्यो पुरानी प्रधाओ का अंत हो रहा है, पुरानी वेश-भूषा भी जा रही हे तथा अब सामान्य खान-पान, रहन-सहन का बोल बाला हों रहा है। ब्यापार इस प्रदेश से अधिकतर निर्यात उसी पदाथ का होता है, जिसकी बचत रहती हैं अथवा जिसका उपयोग नही हो सकता । कोयला, हीरा, लोहा, अभ्यक, रामरज आदि ज्यों के त्यो निर्याति कर दिये जाते है । इसी प्रकार हड्डी, चमड़ा तथा लकड़ी का भी हाल है । लाह को इकट्ठा कर कारखाने में शुद्ध कर बाहर भेज दिया जाता है। घी-चावल का भी निर्यात किया जाता है। यद्यपि गेहूं-चना आवश्यकता से कम होता है, फिर भी दतिया जिले से, जहाँ उपज अधिक होती है, इ -का निर्यात किया जाता है। महुआ के फूल, महूआ बिन्ध्य-प्रदेश का भौगोलिक परिचय ५ के फलों का तेल, तदू कौ पत्ती, चिरौजी, आम (रीवा जिय स), पान (छतरपुर तथा रीवा जिलों से), सिंघाड़ा कमल के फूल (टीकमगढ़ जिले से), मछली (टीकमगढ़ तथा रीवा से ) आदि बाहर के प्रदेनो को भेजा जाता है। जहाँ तक आयात का प्रदन है, ने सभी वस्तुये बाहर से आती हं, जिनकी हमे आवश्यकता रहती है। प्रदेश के मुख्य नगरे को निम्न प्रकार किया जा सकता है : औद्योगिक नगर --सतना (सीमेंट, चना) , उमरिया (लाह, कागज) छतरपुर (पीतल के बतन) पन्ना (हीरा) टीकमगढ़ (मिट्टी के खिलौने ) दतिया (लकड़ी-मिट्टी के स्िलौने ) व्यापारिक नगर--सतना, छतरपुर, दतिया, कोतमा गहडोल, अमरपाटन, नागो, मह राजपुर, चाक, हनुमना एतिहासिक स्थान--खनजुराहा, सोहागपुर, भरहुत, महेवा, ओरछा, दतिया, देवरा मांडा, नचना, कटर धार्मिक स्थान--चित्रकृट, ओरछा, महर, पन्ना, उन्नाव सोनागिरि, परपौरा, अमरकण्टकं श्र णीबद्ध तासन-ग्यवस्धा प्रशासन-व्यवस्था की दृष्टिमे विन्ध्य-प्रदेय निम्नलिखित आट जिलौ म विभक्त हं : (१) रीवा, (२) सतना, (३) गहडाल, (४) सीघ्री (५) छतरपुर, (६) टीकमगढ़, (७) पन्ना, (८) दतिया । प्रदेश की राजधानी रीवा में ह तथा नौगांव में भी बहुत- से मुख्य कार्यालय है। प्रत्येक जिले में एक. कलक्टर रहता है। उसकी देख-रेख में तहसील में तहसीलदारों और गिर्दावरों के माध्यम से प्रदेश का कासन चलता है। प्रदेश की न्याय-व्यवस्था इससे बित्कूल अलग ह। प्राकृतिक साधन, खनिज तथा वन-सम्पत्ति से भरा पूरा प्रदेश आनेवाले यग में पिछड़ा नहीं रहेगा । इधर की प्रगति को देखते हुए यहीं आद्षा की जाती हे कि दस वर्षों बाद विन्ध्य-प्रदेश का औद्योगिक, राजनीतिक तथा सास्क्ृतिक भूगोलं दूसरा ही होगा।




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