आत्मकथा | Aatmakathaa

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : आत्मकथा  - Aatmakathaa

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about मोहनदास करमचंद गांधी - Mohandas Karamchand Gandhi ( Mahatma Gandhi )

Add Infomation AboutMohandas Karamchand Gandhi ( Mahatma Gandhi )

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
शक थक क क मेरे जीवनकी प्रत्येक क्रिया इसी दृष्टिसे होती है । में जो कुछ लिखता हं, वह भी सब इसी उद्देशसे; भ्रौर राजनैतिक क्षेत्रमें जो में कूदा सो भी इसी बातको सामने रखकर । परंतु शुरू हीसे मेरी यह राय रही है कि जिस बातको एक श्रादमी कर सकता हुं उसे सब लोग कर सकते ह । इसलिए मेरे प्रयोग खानगी तौर पर नहीं हुए श्रौर न वैसे रहे ही । इस बातसे कि सब लोग उन्हें देख सकते हें, उनकी प्राध्यात्मिकता कम होती होगी, यह में नहीं मानता । हां, कितनी ही बातें एसी जरूर होती हं जिन्हे हमारी श्रात्मा ही जानती है, जो हमारी श्रात्मामे ही समाई रहती हँ । परंतु एसी बात तो मेरी पहुंचके बाहरकी बात हुई । मेरे प्रयोगमें तो श्राध्यात्मिक शब्दका श्रथं हं नतिक, धमेका ग्रर्थ है नीति, और जिस नीतिका पालन श्रात्मिक दृष्टिसे किया हो वहीं धमं है; इसलिए इस कथामें उन्हीं बातोंका समावेदा रहेगा, जिनका निणेंय बालक य्‌वा, वृद्ध करते हूं श्रौर कर सकते हैं । ऐसी कयाको यदि मे तटस्थ भावसे, निरभिमान रहकर, लिख सका, तो उससे अन्य प्रयोग करने वालोंको श्रपनी सहायताके लिए कुछ मसाला श्रवश्य मिलेगा । में यह नहीं कहता कि मेरे ये प्रयोग सब तरह सम्पूर्ण हे । मे तो इतना ही कहता हूं कि जिस प्रकार एक विज्ञानशास्त्री झ्रपने प्रयोगकी श्रतिदयाय नियम झौर विचार-पुर्वंक सुक्ष्मताके साथ करते हुए भी उत्पन्न परिणामोंको शभ्रंतिम नहीं बताता, श्रयवा जिस प्रकार उनकी सत्यतके विषयमं यदि सशंक नहीं तो तटस्थ रहता है, उसी प्रकार मेरे प्रयोगोंको समझना चाहिए । मेने भरसक खूब प्रत्म-निरीक्षण किया है, अपने मनके एक-एक भाव की छानबीन की है, उनका विश्लेषण किया हे । फिर भी मे यह दावा हरगिज नहीं करना चाहता कि उनके परिणाम सबके लिए भ्रंतिम हें, वे सत्य ही हें, श्रयवा वही सैत्य हैं । हां, एक दावा श्रवश्य करता हुं कि वे मेरी दुष्टिसे सच्चे हें श्रौर इस समय तक तो मुझे भ्रंतिम जैसे मालूम होते हें । यदि ये ऐसे न मालूम होते हों तो फिर इनके ्राघार पर मुझे कोई काम उठा लेनेका श्रधिकार नहीं । पर में तो जितनी चीजें सामने भ्राती हें उनके, कदम-कदम पर दो भाग करता जाता हूं--ग्राह्म श्र त्याज्य; श्रौर जिस बातकों ग्राह्म समझता हूं उसके भ्रतुसार भ्रपने भ्राचरणको बनाता हूं, एवं जबतक ऐसा झाचरण मुझे--भ्र्थात्‌ मेरी बुद्धिको श्रौर श्रात्माको--




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now