अथर्ववेदभाष्यम भाग - 7 | Atharvavedabhashyam Bhag - 7
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
45 MB
कुल पष्ठ :
260
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about क्षेमकरणदास त्रिवेदी - Kshemakarandas Trivedi
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)० ५ [ ३२० | सप्तसं वाशडस ॥ 9 ॥ ( १५३५
नी
५
प न~~
वह ( देवानाम् ) दिव्य वायु सूयं श्मादि लेको का ( श्रधिपतिः ) श्रधिपत्ति
( वश्व ) हुश्मा, ( खः ) बही ( अस्पासु ) हमारे बीच (द्रविणम्) प्रापणीयं
बल ( झा ) सब आओर से ( द्घातु ) घारण करे ॥ २ ॥
सावाथ उासवचपूजनीय, सवान्तयांमी, सबझ, सदा प्रवद्ध परमेश्वरे
उपासक लोग झात्मिक बल बढ़ाकर मास सुख पाते हैं ॥ २ ॥
क ~ |. है ट | र
यहु दुवा देवान् हुविषायज्न्तामव्यान् मनसामत्येन।
०) |. म} ०५५4 तौ ९॥
मदेम तत्न परमेव्येम॒न् पश्येम तठुदितौ सूथैस्य ॥ ३ #
कप. कप है 9
यत् । देवाः । देवाद् । हविषां । प्रयजन्त । असत्य् । मनसा!
॥ >£ | [| ५) ० त्
पमत्यंन । मदम । त । पुरमे । वि-स्मासन् । पश्यस । तत् ।
उत्-दर तौ । स्ेस्य ॥३॥
भाषार्थ--( देवाः ) जितेन्द्रिय विद्धानोौ ने (यत्) जिस चह्य के ( य
मत्यान् ) नृ मरे हुये [ अविनाशी ] ( देवान् ) उसम गुणों का ( हविषा ) श्रपने
देने और लेने योग्य कर्म से श्र ( श्रमर््यैन ) न मरे हुये [ जीते जागते]
( मनखा ) मन से ( श्रयजन्त ) सत्कार, संगति कर्ण श्रौर दान कियादहै।
( तत्र ) उस (परमे) सवसरे बड़े( व्योमन्) विविध रक्षक बृह्यमे (मदेम)
हम श्रानन्द् भोगेः श्रौर ( तत् ) उस ब्रह्म को ( सूर्यस्य) सयं के (उदितौ)
उदय में [ बिना रोक ] ( पश्येम ) दम देखते रहें ॥ ३ ॥
( देवानाम् ) दिव्यानां वायुसूयादिल्ेकानाम् ( श्रधिपतिः ) श्रधिक्तं पालयिता
( श्रस्माु ) उपासकेषु ( दविणम् ) श्र० २। २६ ३ । प्रापरीयं बलम्-निघ°
२।& (श्रा) समन्तात् (द्घातु ) घार्यतु ॥
३--८ यद्) यस्य ब्रह्मणः (देवाः) विजिगीषवो विद्धासः ( देवान्)
दिभ्यान् गुणान् ( हविषा ) दातव्येन ग्राह्मण कमणा ( श्रयजन्त ) सत्छतान्
संगतान् दत्तान् च तवन्तः ( अमत्यान ) शमरणशीलान् । विनाशिनः
( मनसा ) श्रन्तःक्ररणेन ( झमत्यत ) अमरशीलेन । पुरुषाथिना (मदेम)
हष्येम ( त्न ) तस्मिन् ( परसे ) सर्चोत्क्रप्टे ( व्योमन्) अँ प् । १७) ६।
विविधधरच्के अह्मणि ( पश्येम ) श्रालोचयेम (ततर्) जह्य ( उदितौ) उद्यै
{ स्ंस्य ) श्यः ॥ व
User Reviews
No Reviews | Add Yours...