नगरीय समाजशास्त्र | Nagariy Samajashastra

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Nagariy Samajashastra by कौशल कुमार राय - Kaushal Kumar Ray

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अध्याय ९ | नगरों को उत्पत्ति एवं विकास ( 07170 200 [0लण्लनलणा) ० (© ) नगरों की उत्पत्ति कब हुई, कहाँ हुई, और कैसे हुई, इसका ठीक-ठीक पता नहीं लग सका है। इसकी उतपत्ति का इतिहास भतकाल के गर्भ में छिपा हुआ है । उत्पत्ति के संबंध में कोई एक निश्चित तिथि नहीं बतायी जा सकती । इसको अनिश्चिता के संबंध में गिस्ट और हालबर्ट (015 & प्रशण्लः) ते च्ल है : “सभ्यता की उत्पत्ति के समान ही नगर की उत्पत्ति भी भतकाल के अंधकार में खो गयी है ।?” चूँकि ५००० वर्ष पुवं तक्र मनुष्य खानाबदोशो की भांति इधर से उधर धमता था इसलिए लोग यह्‌ अनुमान लगाते हैँ कि उस वक्त मनुष्य का कोई एक निश्चित एवं स्थायी निवास स्थान न था । वे लोग भोजन-वस्त्रादि की खोज में एक स्थान से दूसरे स्थान को भ्रमण किया करते थे । देन लोगों को हम आदि मानव के नाम से संबोधित कर सकते हैं । इन लोगों के घुमक्कड़ होने के संबंध में यह्‌ तक्रं दिया जाता है कि चूंकि स्थान और क्षेत्र सीमित थे इसलिए वे कहीं एक जगह स्थायी निवास कहीं बना पाति थे] इसके अतिरिक्त एक तक और दिया जाता है कि जो अतिरिक्त जनसंख्या होती थी, वही भोजन की खोज में एक-दूसरे स्थान को जाती थी । लेकिन इन दोनों तर्को के मानने का कोई निश्चित आधार नहीं मिलता । इन प्रारम्भिक दिनों मे मनुष्य फं भोजन की ही खोज करता था। चकि एक ही स्थान पर काफी मात्रा में खाद्य-सामग्री नहीं मिल पाती थी, इसलिए लोग एक स्थानसे दूसरे स्थानको भ्रमण करतेये भौर यह्‌ आव- 1. (16 (€ नााहा09 ग लंप्रापिदविएग 15, € 0810 2 06 दए 15 1057 10 106 008८ 9 16 295 अऽ 270 पाला {1087 ऽ0लक्न, 7. 16




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