डॉ॰ रामकुमार वर्मा के नाट्य साहित्य में व्यक्त सौन्दर्य का अनुशीलन | Dr.ram Kumar Varma Ke Natya Sahity Men Vyakt Saundarya Ka Anushilan

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Dr.ram Kumar Varma Ke Natya Sahity Men Vyakt Saundarya Ka Anushilan  by रघुराज सिंह यादव - Raghuraj Singh Yadav

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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।.......................... प्रछाम अध्याय | अध्याय | धिकः = वे = वोतो = पि = तिना = चेद = शभक = शाकः = वेः = महो = विभाय कल, कतादलवनाा = वोदोक विकयोयो वके सयोग = विति = कनका = सनद बरन = सि = पो निहति = शरोता = मोदे चिक = निति = कोते = तैतिदोकोतिः वनिोतोयो = अतेव ( गी 10 0 0 0) वि 2 0 2 2 ए ष @ 2 आ आ 0 0 आ आ 0 7 ष ष 0 2 | सौन्दर्य नामक अभिधान का जो अर्थं निकाला जाता है, उसके || अनुसार सौन्यर्थ की सज्जा जीवन, साहित्य, मनोजगत्‌ एवं वस्तु आदि सभी में | | | परिरक्षित होती है। सौन्दर्य के प्रति मानव चिरकारू से आकृष्ट होता रहा है। यही | सौन्दर्य उसकी आत्मा में अपने प्रकाश को फैलाता रहता है। सौन्दर्य शब्द व्यक्ति के | | जीवन से इतना हिल-मिल गया है कि मन को अच्छी अथवा भरी रगने वाली वस्तु | | को “सुन्दर शाब्द से परिभाषित कर दिया जाता है। वह वस्तु चाहे प्राकृतिक सुषमा || ` || हो, कलाकृति हो, निर्जीव हो अथवा सजीव, उसके रूप लावण्य से अभिभूत व्यक्ति || || आह्लादित हो बैठता है। इसीलिए कहा गया है कि “जिस गुण के कारण सजीव, | निजीव वस्तुओं के प्रति आकर्षण ओर सम्मोहन होता हे तथा क्लान्त प्राणी को सुख की अनुभूति होती है, उसे सुन्दर कहा जाता है।”* सुन्दर' की अनुभूति मुख्यतः दृश्य और श्रवण द्वारा होती है। सुन्दर | वस्तु का नेत्रं द्वारा, कविता ओर राग की मधुरता का कानों द्वारा आभास होता है कि || | वह सुन्दर है अथवा नहीं! यदि वह मानव की इन्द्रिय संवेदनाओं को सुन्दर लगती है | तो व्यक्ति के मन में उसके प्रति आकर्षण पैदा होता है; उसके प्रति सम्मोहित होता || हे ओर सुखद अनुभूति प्राप्त करता है। व्यक्ति चाहे वह कलाकार हो अथवा ए. | साहित्यकार सभी सौन्दर्य की खोज मे लगे रहते हैं। सौन्दर्य की प्रेरणा . समस्त त्ररणाओं से -सर्वोपरि है। यही कारण है कि प्रत्येक कलाकारः साहित्यकार सौन्दर्य का ` || आराधक, ख्ष्टा ओर द्रष्टा होता है। साहित्य हौ अथवा कला का क्षेत्र सभी में सौन्दर्य | का महत्व अधिक रहा है। विश्व. साहित्य भी सौन्दर्य चित्रण से परिपूर्णः है। | सौन्दर्य की परम्परा आधुनिक नहीं है। प्राचीन काल में ऋग्वेद से लेकर ` || वाल्मीकि द्वारा प्रवाहित. “कीं. गई. सौन्दर्य ' क्री धारा का विकासमान प्रवह भक्त




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