आयाम | Aayaam
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
88 MB
कुल पष्ठ :
259
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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है, उसका प्रथं व्यंजना तथा लक्षणा शक्तियों पर झाश्चित होता है । भाषागत प्रतीक,
व्य॑जना के द्वारा ही भ्रथें व्यक्त करते हैं । श्रतः शब्द-प्रतीक की व्यंजना तथा लक्षश
शक्तियो पर ही साधारणीकरण की क्रिया भ्रवलम्बित है ।
ख- ध्वनि श्रौर प्रतीक
शब्द शक्ति श्रौर प्रतीक
यदि रस, काव्य की श्रात्मा है तो ध्वनि, काव्य शरीर को बल देने वाली
संजीवनी शक्ति है । घंटे के श्ट के बादजो सुमधुर भकार निकलती है श्रौर जो
शने: शने: वायुतरंगों में विलीन हो जाती. है--यही भंकार ध्वनि का रूप है । इसी
प्रकार ध्वनिवादियों ने शब्द-शक्ति का विशद विश्लेषण प्रस्तुत किया है । इस विश्ले-
पग कर द्वारा प्रतीक श्रौर शब्द शक्ति के सम्बन्ध पर प्रकाश पड़ता है ।
मारतीय मनीषा ने शब्द शक्ति के विश्लेषण द्वारा भाषागत-प्रतीक-दर्शन
की भूमि प्रस्तुत की है। माषागत प्रतीक दर्शन यह सिद्ध करता है कि भाषा का
गठन श्रौर विकास प्रतीकों के संगठन एवं श्र्थबोध का इतिहास है । शब्द-शक्तियों
के द्वारा भाषा की उस शक्ति का पता चलता हैं जो किसी भी भाषा के सबल रूप
का च्रोतक है । शब्द शक्तियों पर ही प्रतीक का मवन निमित होता है श्रौर जिसकी
प्राधर- शिला पर ही श्रथ प्रस्फुटन होता ।
मारतीय काव्य-शास्त्र में शब्द की तीन शक्तिर्या मानी गयी है--ग्रमिधा,
लक्षणा श्रौर व्यंजना । इनमें सर्वोच्च स्थान व्यंजना शक्ति का माना जाता है ।
(काव्य की हष्टि से) इसी व्यंजना . (9088651४606५४) द्वारा व्यक्त व्यंग्यार्थ को
` “ध्वनि कहा गया । जहाँ तक श्रमिधा का प्रष्न > वह् तो केवल शब्द का प्राथमिक
भ्रथ है जो शब्द से परे किसी श्रन्य अर्थंका वाहक बनने में झ्रसमुर्थ है,। लक्षणा भी
शब्द की वह शक्ति है जो प्राथमिक श्र्थ से द्वितीय श्रर्थ की श्रोर भ्रग्रसर होती है,
परन्तु व्यंजना शक्ति, काव्य की हृष्टि से, उच्चतम शक्ति कही जाती है । सत्य में
काव्यानुभूति को अभिव्यक्ति शब्द की व्यंजना एवं लक्षणा शक्तियों पर श्राश्रित
है । दूसरे शब्दों में, ध्वन्यात्मक काव्य में इन दो शक्तियों द्वारा, श्र्थ-ध्वनि का रूप
मुखर होता है। डा० रामकुमार वर्मा ने, इसी से यह विचार व्यक्त किया है कि
प्रतीक का सम्बन्ध शब्द-शक्ति की ध्वनि-शैली से है ।* प्रतीक की यह ध्वन्यात्मक
परिणति शब्द के व्यंग्या्थं का विकसित रूप है। यदि शब्द व्यंग्याथ का ध्वनन न.
कर सका तो वह प्रतीक का रूप नहीं हो सकता है । श्रलंकारों के क्षेत्र में शब्द की
लक्षणा श्रौर व्य्जना शक्तियों का पूरा प्रयोग किया गया है। इस पर हम श्रागे विचार
करेंगे । रीतिराव्य में अधिकाँश प्रतीको की योजना श्रलंकारों के श्रावरणा में श्रथवा
डी
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