चौविस तीर्थकर महापुराण | Chouvis Tirthkar Mahapuran (1994) Ac 6417

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Chouvis Tirthkar Mahapuran (1994) Ac 6417 by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१७५ : भगवान ऋषभदेव (म हापुग ण) {अपना भगवान राजा व़जघ और श्रीमती भोजन की तैयारी कर ही रहेथे कि इतने मे अचानक दो गगनविहारी मुनिवर दमधर ओर सागरसेन वरौ पधारे। अहा, मुनिवर पधारे मारना साक्षात्‌ मोक्षमार्गं ही आगया! आकाण से उतरते हुए मुनिवरो को देखकर ही राजा तथा मंत्री आदि सनको महान आनन्दाश्र्य हुआ । ॐ, बनके सिह, बन्दर. शूकर ओौर नेवला जैसे पशु भी मुनिराज को देखकर अति हर्षित हौ उदे। उन समुनिवगे की वनमे ही आहार लेने की प्रतिज्ञा थी। वे अत्यन्त तेजस्वी और पवित्रता से शोभायमान धे पानो स्वर्ग ओर मोक्ष यहीं पृथ्वीपर उतर अये रहो! दोनों मुनिवर डर के निकट आते ही राजा-रासीने अति आनद एवं भक्ति सहित उनका पडगाहम किया कि - हि स्वामी। फाति पधार पघारो ! र मुनराज के रुकते ही वज़जघ और श्रीमती ने भक्तिपूर्वक उमकी प्रदक्षिणा की, ममस्कार करने. सन्मान किया और योग्य विधिपूर्वक भोजनशाला मे प्रवेश कराके उच्चासनपर बिठाया। उनके चरणी का प्रक्षालन, पूजन एवं नमन किया और पश्चात्‌ मन-करन-काया की शुद्धपूर्व दाता के सात गुण (श्रद्धा, संतोष, भक्ति आदि) सहित विशुद्ध पर्णिाप्रो सयो उन उत्तम सुनिवरा करो विधिपूर्वक आहारतान दिया (अभी उन्हें खबर नहीं है कि. जिन्हे -प्राह्ारदःन दिया वे. उसके अपन पत्र ही थे।) मुक्िगिज को आहारदान का वह भव्य आनन्दकारी प्रसंग था । उस उत्तम आहारदान के प्रभाव रो तुरन्त ही वहाँ पॉच आश्र्यजनक वस्तु प्रगट हुई (१) आकाश से रत्नवृष्टि होने तमी; (२) पुष्पवर्षा होने लगी (३) मुंध रसने लगी, = (४) दुदुभि बाजे बजने लभे, ओौर (५) आक्राण में देवगण अहो के # 0 9 > ती दान महादान एेसे शब्दपूर्वकः जयजयकार करने लगे। आहारदान के पश्चात्‌ दोनो पुनिवरों को लन्दन और पृजन कर के जब वज़जघ उन्हे विदा करने लगे तब अत 'पुरकी दासीने कहा. राजन! यह दोनों मनियर आपके सबस छोटे पुत्र ही है। यह सुनकर ही वज़जप और श्रीमती अति प्रेमपूर्वक उनके निकट गय और उनके धर्मभवण किया। फिर वज़जघने अपने और श्रीमती के पूर्व भव पृछे। मुगिवरा ने दोनो के पूर्वभत्र (ललिताग नेव और स्वयप्रभादेवी) का वर्णन फ्रिया। तत्पश्ात वज़जघते पुन पूछा... हि नाश! यह मतिवर मत्री, आनन्द पुरोहित, धनमित्र सेठ और अकम्पन सेनापति यह यागें जीव मुझे भाई की तरह अत्यन्त प्रिय है, इसलिये कृपा करके आप उनके भी पूर्वभव के! पठ मुनिराजने कहा हे राजन। इन मतित्ार प्री का जीव पूर्वधव प्रे सिह था। एकवार प्रीतिखर्धन राजान वन मे मुनि का आहार दा दिया, उसे देखकर सिह को जाति स्मरण हो गया,जिससे बह बिलकुल शात हो गया ओौर आहारादि का त्याग कर्के एक शिलापर जा लैटा। मुनिराजने अवधिज्ञान द्वारा बह जानकर प्रीतिवर्धन राजासे कहा * हे राजन । यह सिह श्रावक के त्रत धारण करके संन्यास ले रहा है,




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