केथोराइन (स्वाधीनता की देवी) | kethoraein(swadhinta ki devi)
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
82
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)चाव्प-फाल । ५
भी
करती । घेत, ऊर, चराग, भूमिफर, आवि रे सम्बन्धं
बातें हुआ करतीं थीं भीर कमो कभी फौजी भर्तीफो पात भी
छिड़ ज्ञाया करती थी, फ्योंकि उस समय फे राउय-नियमों कै
अनुसार रूसी फौज के लिये किसानों को ही अपने लड़फे देने
पढ़ते थे। उस समय मैं कुछ भी न सम सफती थी कि
बेचारे किसानों पर इतना अत्याचार कषयो किया जातवा था १
“वहुधा मैं छिपफर निकर के प्रामों मे जाया फरती भीर
किसानों फी भ्नेपदिर्यो को देखा करती--करीं द्ध घास पर पढ़ें
हुए खास र्दे ई, पास ही कुड़ेका ढेर लगा शुमा है। देयारे
दिनभर थेरे पड़ पटे मूलस कराया करते, धयोकि भीरः सप
लोग जेतॉपर चले जाते थे । छोटे छोटे वर्द चीचमें खेला करते
भीर खुमरों तथा कुत्तो के जडे यरतनों भ पानी पिपा करते थे !
गिरजाघसें मे जाकर ये सये किसान आषु यष्टा यदा फर
परमात्मा से प्रार्थना फिया करते धे कि- है भगयन् ! इन फ्टों
को दूर करो और दया करो फि ऐसा दुःखमय जीवन किसी को
भी न मिले ।”
श्लय र साठ प फी थी, उसी समय से मेरे मन में न्याय
सन्याय का प्रर हृद् दोने खगा धा 1
अन्य याटकों- फो भांति फेधोरादन भपने मापो यडा न
समकती थी ओर न फी उक्तम उत्तम पदार्थो का भोग करै
की इच्छा रखती थी । उसका यद स्वभाव था कि जो
कुछ पाती, उसे गरीय बालकों को दे देती। जय फभी नये
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