एस धम्मो सनंतनो | Es Dhammo Sanantano
श्रेणी : दार्शनिक / Philosophical, धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
20 MB
कुल पष्ठ :
514
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)आत्मक्रांति का प्रथम सुन : अवैर
नहीं मात सकता । यह तो मैं मान ही नहीं सकता कि बेईमानी भी वही कर
रहा है।
अब यह थोड़ा सोचने जैसा है। हमे भी लगेगा कि वेचारा, घामिक बात तो
कह रहा है' यह व्यक्ति, कि बेईमाती कैसे परमात्मा पे छोड़ दूं? लेकिन नहीं,
सवाल यह नहीं है । अहंकार ... ! यह कोई परमात्मा को बचाने की चेष्टा नहीं
है कि परमात्मा पे बेईमानी कैसे सौंप दूँ; यह भी अहंकार को बचाने की चेष्टा
है । ध्यान रखना कि जब बेईमानी तुम करोगे, तो ईमानदारी भी तुम ही करोंगे ।
लेकिन जब जन्म भी तुम्हारा अपना नहीं है और मौत भी तुम्हारी अपनी नहीं है,
तो दोनों के बीच में तुम्हारा अपना कुछ कंसे हो सकता है ? जब दोनों छोर पराये
हैं, जब जन्म के पहले कोई और के हाथ में तुम हो, मौत के बाद किसी और के
हाथ में, तो यह बीच को थोड़ी-सी जो घड़ियाँ हें, इनमें तुम अपने को सोच लेते
हो अपने हाथ में, वही भांति हो जाती है । वहीं अहंकार तुम्हें जगने नही देता ।
वही अहंकार सोने की नयी तरकीबें, व्यवस्थाएँ खोज लेता है ।
इसलिए बुद्धपुरष अते ह । उनके तीर ठीक तरकस से तुम्हारे हृदय की तरफ
निकलते हूं । पर तुम बचा जाते,
हजारो खि पैदा कर चुकी है नस्ल आदम की । ' आदमी ने कितने बुद्धपुरुष
पैदा किये ! हजारों खिज्य -- पैगंबर, तीर्थंकर !
हजारो खिख पैदा कर चुकी है नस्ल आदम की
ये सब तस्लीम लेकिन आदमी अब तक भटकता है
यह् सब तसलीभ, यह सब स्वीकार कि हजारो बुद्धपुष्ष हुए ह । पर इससे क्या
फकं पडता है ? ` आदमी अब तक भटकता है । ' आदमी भटकना चाहता है ?
कहता तो आदमी यही है कि भटकना नहीं चाहता । कहते तो तुम मेरे पास यही
हो, शात होना चाहते हैं, सत्य होना चाहते हैं, सरल होना चाहते हैं। लेकिन सच
में तुम होना चाहते हो ? याकि सरलता के नाम पर तुम नयी जटिलता खोज
रहे हो ? या सत्य के नाम पर तुमने नये झूठों की तलाश शुरू की है ? या शांति
के नाम पर अब तुमने एक नया रोग पाला ? अब तुम शांति के नाम पर अशांत
होने को उत्सुक हुए हो । साधारण आदमी अशात होता है सिफं; शांति की तो
कम से कम चिंता नहीं होती । अब तुम शाति के लिए भी चिंतित हुए, पुरानी
अशांति तो बरकरार, अब तुम और धन करोगे उसमें, गुणनफल करोगे । अब तुम
कहोगे कि शांति भी चाहिए ।. अब एक नयी. अशांति जुड़ी, कि शीति मदी है । शठे
तो तुम थे; अब तुम कहते हो सत्य खोजेंगे । अब तुम सह्य के मामः पर कठ नये
कूठ ईद करोमे -- स्वर्ग के, मोक्ष के, नकं के. परमात्मा के, जाक ढै. ।
१३
User Reviews
No Reviews | Add Yours...