बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय झांसी के शिक्षा - संकाय में | Bundelakhand Vishvavidyal Jhansi Ke Shiksha - Sankay Men
श्रेणी : मनोवैज्ञानिक / Psychological
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
131 MB
कुल पष्ठ :
235
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)'जाति” अथवा अंग्रेजी शब्द “कास्ट” विविध व्यावसायिक समूहों तथा आत्मसात हुए राष्ट्रीय
तथा जनजातीय समूहों के सन्दर्भ में है । जाति प्रथा के अन्तर्गत समूह में व्यक्ति की सामाजिक
स्थिति का निर्धारण आनुवंशिक होता है । प्रमुख रुप से जातियों का वर्गीकरण तीन समूहों में
किया जा सकता है ।
(1) उञ्चतर जातिर्यो
(1) पिष्टड़ी जातियाँ
1) निम्नतर जातियों
उच्चतर जातियों में ब्राम्हण, क्षत्रिय तथा वैश्य आते हैं जबकि निम्नतर जातियों में
श्र, हरिजन अथवा दलित वर्गं को गिना जाता है । समाज सुधारकों तथा राष्ट्रवादियों ने खान
-पान व शादी- विवाह के सन्दर्भों में कटूटरता को शिथिल करने तथा कठोर जातीय बन्धनो
को तोड़ने का प्रयास किया । औद्योगीकरण तथा नगरीकरण से उत्पन्न नई परिस्थितियों ने जाति
के साथ आनुवांशिकता के आधार पर जुड़ी व्यवसाय की परम्परा को तोड़ दिया है । इस प्रकार हिन्दू
जनजीवन को एक नई जीवन शैली तथा एक नया परिवेश प्राप्त हुआ । इन क्रान्तिकारी परिवर्तनों
ने हिन्दुओं के जीवन को कितना प्रभावित किया है । वस्तुतः इन परिस्थितियों का सम्यक निरीक्षण
परीक्षण हमें यह कहने के लिए आधार प्रदान करता है कि इन परिस्थितियों को हिन्दुओं ने स्वीकार
कर लिया है । वे ग्रामवासी हों या नगरवासी हों । हाँ यह अवश्य है कि जीवनीय समस्यायों
से निपटने के लिए हिन्दू मानसिकता ने इस परिवर्तन को एक तेवर के रुप में ग्रहण किया है ।
जीवित रहने के लिए इन परिस्थितियों के आधार पर जातीय कटूंटरता को शिथिल या समाप्त
करने को एक अनिवार्य आवश्यकता के रुप में स्वीकृति दी है । यही कारण है कि आज भी वह अपना
जीवन अपने जाति समूह के रूप में जारी रखे हुए हैं । यद्यपि ऐसा करने में उसे बहुत सी कानूनी
अड़चनों का सामना करना पड़ता है ।
इस प्रकार भारत मे सामाजिकं जीवन मेँ क्रान्ति हुई है किन्तु फिर भी इस बात को पूर्ण
विश्वास से नहीं कहा जा सकता है कि हम जाति से संयुक्त नहीं हैं । जैसा कि भास्करन ने व्यक्त
किया है कि हमें यह मानना ही चाहिये कि जाति प्रथा अस्तित्व में है । यह अनेक विचारकों का
मत है कि जातियां नये कार्य अपना रही हैं । वर्तमान परिय म जाति का राजनीति पर प्रभाव
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