बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय झांसी के शिक्षा - संकाय में | Bundelakhand Vishvavidyal Jhansi Ke Shiksha - Sankay Men

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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'जाति” अथवा अंग्रेजी शब्द “कास्ट” विविध व्यावसायिक समूहों तथा आत्मसात हुए राष्ट्रीय तथा जनजातीय समूहों के सन्दर्भ में है । जाति प्रथा के अन्तर्गत समूह में व्यक्ति की सामाजिक स्थिति का निर्धारण आनुवंशिक होता है । प्रमुख रुप से जातियों का वर्गीकरण तीन समूहों में किया जा सकता है । (1) उञ्चतर जातिर्यो (1) पिष्टड़ी जातियाँ 1) निम्नतर जातियों उच्चतर जातियों में ब्राम्हण, क्षत्रिय तथा वैश्य आते हैं जबकि निम्नतर जातियों में श्र, हरिजन अथवा दलित वर्गं को गिना जाता है । समाज सुधारकों तथा राष्ट्रवादियों ने खान -पान व शादी- विवाह के सन्दर्भों में कटूटरता को शिथिल करने तथा कठोर जातीय बन्धनो को तोड़ने का प्रयास किया । औद्योगीकरण तथा नगरीकरण से उत्पन्न नई परिस्थितियों ने जाति के साथ आनुवांशिकता के आधार पर जुड़ी व्यवसाय की परम्परा को तोड़ दिया है । इस प्रकार हिन्दू जनजीवन को एक नई जीवन शैली तथा एक नया परिवेश प्राप्त हुआ । इन क्रान्तिकारी परिवर्तनों ने हिन्दुओं के जीवन को कितना प्रभावित किया है । वस्तुतः इन परिस्थितियों का सम्यक निरीक्षण परीक्षण हमें यह कहने के लिए आधार प्रदान करता है कि इन परिस्थितियों को हिन्दुओं ने स्वीकार कर लिया है । वे ग्रामवासी हों या नगरवासी हों । हाँ यह अवश्य है कि जीवनीय समस्यायों से निपटने के लिए हिन्दू मानसिकता ने इस परिवर्तन को एक तेवर के रुप में ग्रहण किया है । जीवित रहने के लिए इन परिस्थितियों के आधार पर जातीय कटूंटरता को शिथिल या समाप्त करने को एक अनिवार्य आवश्यकता के रुप में स्वीकृति दी है । यही कारण है कि आज भी वह अपना जीवन अपने जाति समूह के रूप में जारी रखे हुए हैं । यद्यपि ऐसा करने में उसे बहुत सी कानूनी अड़चनों का सामना करना पड़ता है । इस प्रकार भारत मे सामाजिकं जीवन मेँ क्रान्ति हुई है किन्तु फिर भी इस बात को पूर्ण विश्वास से नहीं कहा जा सकता है कि हम जाति से संयुक्त नहीं हैं । जैसा कि भास्करन ने व्यक्त किया है कि हमें यह मानना ही चाहिये कि जाति प्रथा अस्तित्व में है । यह अनेक विचारकों का मत है कि जातियां नये कार्य अपना रही हैं । वर्तमान परिय म जाति का राजनीति पर प्रभाव (1)




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