श्री रूपगोस्वामी विरचित विदग्धमाधवम का समालोचनात्मक अध्ययन | Sri Rupgosvame Verachit Vidagdhmadhavam Ka Samalochanatmak Adhyayan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
200 MB
कुल पष्ठ :
386
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about श्रीमती मधुरलता द्विवेदी - Shri Madhuralata Dwivedi
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)क
ष
1. प्रकाश 2. स्वगत 3. अपवारित 4. जनान्तिक
2. नेता तथा पात्र
रूपकों का दूसरा भेदक नेता है । यह चार प्रकार कं होते हे। अपनी-अपनी
व्यक्तिगत विशेषता के साथ सभी धीर होते हे।
1. धीर ललित 2. धीर प्रशान्त 3 धीरोदान्त 4. धीरोद्धत
नायक में आठ सात्विक गुणों की स्थिति होना अनिवार्यहे।येगुणहे- शोभा,
विलास, माधुर्य, गाभीर्य, स्थेय, तेज, लालित्य तथा ओदार्य |
नायक का शत्रु प्रतिनायक होता है| यह धीयेद्धत प्रकृति का होता है| नायक
का साथी पताका नायक पीठमर्द कहलाता हे । नायक के राजा होने पर राज्य कार्य तथा
धर्म कार्यं में उसकं सहायक मन्त्री, सेनापति, पुरोहित आदि होते हे | प्रम के समय राजा या
नायक के सहकारी विदूषक तथा विट होते हे।
संस्कृत नाटक में विदूषक एक महत्वपूर्ण पात्र है ओर भी अनेक पात्र राजा के
सहायक होते है । जैसे - दूत कमार आदि जिनका प्रयोग नाटककार आवश्यकतानुसार
किया करते है।
नायिका
नायक की भाँति नायिका भी नाटक का मुख्य पात्र है। नाटिका में तो नायिका
का विशेष व्यक्तित्व है| इन्हें तीन तरह का माना जा सकता है।
1. स्वकीया
नायक की पत्नी |
2. परकीया
वह नायिका जो नायक की पत्नी नहीं हे।
3. सामान्या
साधारण स्त्री या गणिका) वेश्या या गणिका
स्वकीया नायिका तीन प्रकार की होती हे।
User Reviews
No Reviews | Add Yours...