श्री रूपगोस्वामी विरचित विदग्धमाधवम का समालोचनात्मक अध्ययन | Sri Rupgosvame Verachit Vidagdhmadhavam Ka Samalochanatmak Adhyayan

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Sri Rupgosvame Verachit Vidagdhmadhavam Ka Samalochanatmak Adhyayan by श्रीमती मधुरलता द्विवेदी - Shri Madhuralata Dwivedi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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क ष 1. प्रकाश 2. स्वगत 3. अपवारित 4. जनान्तिक 2. नेता तथा पात्र रूपकों का दूसरा भेदक नेता है । यह चार प्रकार कं होते हे। अपनी-अपनी व्यक्तिगत विशेषता के साथ सभी धीर होते हे। 1. धीर ललित 2. धीर प्रशान्त 3 धीरोदान्त 4. धीरोद्धत नायक में आठ सात्विक गुणों की स्थिति होना अनिवार्यहे।येगुणहे- शोभा, विलास, माधुर्य, गाभीर्य, स्थेय, तेज, लालित्य तथा ओदार्य | नायक का शत्रु प्रतिनायक होता है| यह धीयेद्धत प्रकृति का होता है| नायक का साथी पताका नायक पीठमर्द कहलाता हे । नायक के राजा होने पर राज्य कार्य तथा धर्म कार्यं में उसकं सहायक मन्त्री, सेनापति, पुरोहित आदि होते हे | प्रम के समय राजा या नायक के सहकारी विदूषक तथा विट होते हे। संस्कृत नाटक में विदूषक एक महत्वपूर्ण पात्र है ओर भी अनेक पात्र राजा के सहायक होते है । जैसे - दूत कमार आदि जिनका प्रयोग नाटककार आवश्यकतानुसार किया करते है। नायिका नायक की भाँति नायिका भी नाटक का मुख्य पात्र है। नाटिका में तो नायिका का विशेष व्यक्तित्व है| इन्हें तीन तरह का माना जा सकता है। 1. स्वकीया नायक की पत्नी | 2. परकीया वह नायिका जो नायक की पत्नी नहीं हे। 3. सामान्या साधारण स्त्री या गणिका) वेश्या या गणिका स्वकीया नायिका तीन प्रकार की होती हे।




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