रिसते - रिश्ते | Risate Rishte

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प्रेमचंद का जन्म ३१ जुलाई १८८० को वाराणसी जिले (उत्तर प्रदेश) के लमही गाँव में एक कायस्थ परिवार में हुआ था। उनकी माता का नाम आनन्दी देवी तथा पिता का नाम मुंशी अजायबराय था जो लमही में डाकमुंशी थे। प्रेमचंद की आरंभिक शिक्षा फ़ारसी में हुई। सात वर्ष की अवस्था में उनकी माता तथा चौदह वर्ष की अवस्था में उनके पिता का देहान्त हो गया जिसके कारण उनका प्रारंभिक जीवन संघर्षमय रहा। उनकी बचपन से ही पढ़ने में बहुत रुचि थी। १३ साल की उम्र में ही उन्‍होंने तिलिस्म-ए-होशरुबा पढ़ लिया और उन्होंने उर्दू के मशहूर रचनाकार रतननाथ 'शरसार', मिर्ज़ा हादी रुस्वा और मौलाना शरर के उपन्‍यासों से परिचय प्राप्‍त कर लिया। उनक

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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तीये की बैठक 7 > < ४ बैठक मे बैठ हुए श्री कलला ने मुझसे पूछा था कि मृतका का क्या नाम था व कितने वर्प की थी | मेंने अन्दाजन बता दिया था कि सक्सेना जी को उग्र को देखते हुए वे सत्तर चर्प की हागी ओर उन्हीं की माँ थी (नाम का ता मुझे भी पता नहीं था) । उन्होंने फिर पूछा कि क्या बीमार थी, कैसे मरीं ? मैंने कहा कि कई वर्षों से बीमार थी ओर वे मरी क्या, जी गई--मरने पर तो उनका जीवन सुधर गया । वे हक्का-बकका होकर बोले कि यह क्या मरने पर भी जीवन सुधरता हे । मै शान्त रहा मेरा मन मुझे तीन वर्ष पीछे ले गया जब में अपनी पत्नी सहित इनके घर गया था। € न्द भ मृतका कं पतति नामी डक्टर थे! खूब अच्छी कमाई थी 1 उनके तीन लडके व एक लडकी थी । लडकी कौ दूर शहर मे बडे भटौ परिवार म शादी हुई थी, पति बडा अफसर हैं। तीना लडके इसी शहर म रहते हें, एक इंजीनियर, एक सरकारी अफसर व एक 'डॉक्टर है । डॉक्टर मझला है ओर उसे ही हम जानते थे। श्रो कल्ला भी उसे ही जानते थे। वह मिडिल ईस्ट म॑ कई वर्ष रह कर तीन वर्ष पहले लौटा था। श्री कल्‍ला तो अभी एक वप पूर्व हौ उन्हं जानने लगे थे जव वह उनके पदौस म किरायं के मकान मे आकर कुछ दिन रहा ओर वह एक-दो वार उससे मिले। हम तो उनको मिडिल ईस्ट जाने से पूर्व से जानते थे जव वे हमारे एरिया म पास मे रहते थे। बस इतना सा हमारा सम्बन्ध था। वे मिडिल ईस्ट से लौटे थे। उनका फोन भी आया था कि हम वापिस आ गए हैं और अभी पैतृक मकान सेठी कॉलोनी मे रह रहे हैं तो मैं पत्नी सहित उनसे मिलने चला गया था। सक्सेना जी उनकी डॉक्टर पत्नी व दाना बच्चे वहीं थे। सक्सेना जी के पिता का कईं वर्पो पहले जब वे मिडिल ईस्ट मे थे देहान्त हो गया धा। उस समय व अकेले चन्द दिनो कं लिए आए थे! सक्सेना जी के पिता ने बडा मकान बनाया था ओर्‌ अपने मरने से पहले अपने तीनो लडको के नाम बँटवारा कर गए थे । सरकारी अफसर बेटे न तो हिस्सा आने पर उसे बेच दिया था। वह सरकारी आवास म रह रहा था। इजीनियर मकानो का ठेके लेता है । वह इसी मकान म॑ शुरू स सपरिवार रहता दै ओर वही अपनी मौँकोरखरहा थाया यो कहिए कि माँ अपने पति का निवास छोडकर नहीं जाना चाहती थी । सक्सेना जी के पिता ने अपनी पत्नी के नाम भी थोडा सा हिस्सा रख दिया था ओर वही सक्सेना जी की मँ के पास बचा था। समाज मे कहने को तौ वह अपने बेटे के पास रह रही थी पर जब तक हाथ पौव चले उसे खुद हौ अपना खाना बनाकर खाना पडता था। कैसी विडम्बना है 7 बच्चा को बडा करते हुए स्वप ५<त हुए उसने कभी यह नहीं सोचा होगा। हम सक्सेना जो ने कहा कि मिडिल ईस्ट से वापिस आए तो एक बार यहीं पैतृक मकान पर रुक गए, अब हमे किराये के लिए और अच्छा मकान बताइए । हमने मकान के




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