भारतीय अर्थशास्त्र | Bharatiy Arthashastra

Bharatiy Arthashastra by प्रो. आनन्द स्वरूप गर्ग - Prof. Anand Swarup Garg

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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४ पश्मिषा, क्षेत्र तया शारतीय भर्थ-व्यवस्था के ललण ७ दिदेशी महायता पर निर्भर रहना पढ़ता है। द्वितीय पचदर्पीय योजना में कुल राप्ट्रीय-धाय का ११५६, भाग विनियोग हुमा था जिसमें से देश की बचत एफ तथा विदेशी बचत ३% थी । तृतीय प्रचवर्षीय योजना में कुल राष्ट्रीय-ग्राय के १४२७ भाग का विनियोग करना निषिचित त्रिया गया है । थोगना झायोग (धापा (कण्डे) के अनुमानानुसार भारत की देशी-वचत की दर तृतीय, चतुरं और पचम योजनाओं वे अस्त मे राष्ट्रीय झाय {>१,.००३) वप्रस्नफ) का क्रमा ११ ५०७.१६०० ग्रोर १६०८ भाग हो जायगी । (ड) भारतीय कृषि शरीर उद्योग को भ्रत्तर्राष्ट्रीय स्थिति पर निर्भर है--हमारे देश की इपि और उद्योग, दोनो हो एक सीमा तक अन्तर्राष्ट्रीय स्थिति पर निर्भर रहते है । चू कि धन्तर्राप्ट्रीय स्थिति सदा श्रपने मनुकूल नही होती, इसलिये इसका मारपतीय पि एव उद्योग प्र प्राय बुरा प्रभाव पड़ता है । सन्‌ १६३६ की विदवव्यापी सदी तथा कोरिया का युद्ध इसके ज्वलत उदाहरण हैं । भारतीय श्रर्थ-च्यवस्या श्र -दिक सित है(ण्पष्णय ८०० 3 एकटा परूलेगृत्व)--मास्त एकं र्व-विकसित देय है । इसकी मर्थं विकसित प्रय-न्यवस्या ने मुख्य लक्षण इस प्रवार हैं-- (४) श्रीदोगिक क्षे मे पयप्ति विकाप्त नहीं हृध्रा है-प्राजकायुगश्रौयोगीकरण का युग है। हमारा देश श्रौद्योगिक-प्रगति के दृष्टिकोण से झभी बहुत पिछड़ा हुआ है। इसलिय विशाल स्तरीय उद्योग-घन्धों में भारत की कुल बायंसील जनतल्या का केवल ३९ माग ही लगा हुमा है। यद्यपि उपभीग्य-वस्तु-उद्योगो ((०ष्डणाण९ा 5. 60०08 10056९३) का देश में पर्याप्त विकास हो सवा है, परन्तु प्र जीगत एवं उत्पादकों की वस्तुओं के उद्योगों (छव अत्‌ एच्लाचल्ल'ह (००6 दितेकचर्ड) की स्थिति अभी तक म्च्छो नहीं है। (७) पूजी का भ्माव (६5०. ०६ (08फा651)--चे कि उद्योग, यातायात, सिंचाई एवं बिक्ारां के अ्स्थ साधनों की र्यापना में पर जी का विशेष सहत्व होता है, इरालिये विसी देश के श्राथिक चिदधडेपन (क८०0०प८ 130 फ्रदादेसल्‍55) का मुख्य वारण शया लक्षण बहा पर पू जी का श्रमाव हुमा बरता है । हमारे देश में नागरिकों थी पूजी बचाने वी क्षमता (29015 1० 82९९} बूत क्म है । श्रमी तक भारत मे बचत और दिनियोग वी दर राष्ट्रीय प्राय वा बेदल ८ ५९%, माग ही है । चू वि हमारे देश में पूजी की बहुत कमी है, इसलिये अधिकाश कार्य मशीनों व यनतों को भ्रपेक्षा सानव- श्रम [प्रप्ता .200प/ 8 दारा हो विये जनि हैँ । इसके श्रतिरिकत भारतीय उद्योगों का झमिनवीक रण (8६:००31८3000 न हो सकने का मूल कारण भी पूंजी वा अभाव ही है । (0) कुशल श्रम तथा तक नीकी ज्ञान की कसी (1९. ण यान्त कण्ण ख्यन्‌ वल्णल्ण ऋणाल्धहर)ो-- सस्ति मे जनमख्या का श्रावार बहुत बडा होने वे कारण श्रम वी पुति तो प्रत्याधिक है, परन्तु कुशल श्रम का एकदम अभाव है । श्रत कुशल इन्जीनियरों तथा श्रौद्योगिक-विशेषज्ञो के लिये भारत को विदेशों पर निर्मर रहना पडता है । इसलिये श्राजकल देश वे झायिक-विकास ये वदद दप्वा पड रही है । (८९) योग्य एवं निपु साहसियों का




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