उदाहरण माला खंड 3 | Udhara Mala Khand 3

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Udhara Mala Khand 3  by चम्पालाल बांठिया - Champalal Banthiya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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उदादरण माल वै विचार नहीं करेगा कि मारने, योधने भौर कंद फरने से एसे कंसा दुख होगा | इस प्रकार विचार कर मने निकष्चय किया कि फुमार को इसका जगनूमव करा दिया जावे, जिसमे यह्‌ भाज्ञा देते समय अपने अनुभव पर से दूसरे के कप्ट को जान सके और विदार कर आज्ञा दे । यपि यह मैं पहले ही जानता था कि कुमार को जो दिक्षा मैं दे रहा हू, इसके बदले में सम्भव है कि पुमे फी की सजा भी मिने । लेकिन इसके लिए मैंने यही निश्चय किया कि भेरी फासी से अनेको आदमी कष्ट से देंगे, इसलिए मुकं फासी का भय ते करना दाहिये और कुमार को क्षिक्षा दे देनी चाहिये । यही विचार कर सैंने कुमार को शिक्षा दी है, कुमार को मारा नही 1 शिक्षक की चात सुनफर राजा हूत प्रसप्त हमा । वह िक्षक्त कौ प्रसा करने लगा कि तुमने बह काम किया है जिसके विपय में सु अब तक चिन्ता थी, तुमने सुक्के चिन्ताभुक्त कर दिया । यद्यपि तुम्हारे दस कार्यं ते प्रसत्त होकर मुभे उचित्त था कि मैं तुम्हे पुरस्कार देता, परन्तु मैं इस रहस्य को अब तक न जान सका था इसलिए मैंते तुम्हे फामी देने की आज्ञा दे दी । अगर मैं तुम्हें फस देते पी पनी साक्षा को वापिस लेता हूं और दस ग्राम कौ जागीर देकर तुम्हारे सिर पर यह भार देता हूं कि जिस तरह दस बार तुमने अपने प्राणों की. परषाहू ते करके कुमार को किद्षा दी है, इसी प्रकार सदा शिक्षा देते रहना । राजा की वात के उत्तर मे दिक्षफ ने कहा कि मापकी यह आज्ञा शिरो- घायें है, परन्दु मैं जागीर नहीं ले प्कता । यदि जागीर लूगा तो फिर आपको साना का पाछ्न नहीं कर सकू गा । वेयो कि तब मैं शिक्षक ने रहूंगा किन्तु गुलाम होऊ गा । मुझे अपनी जागोर छिन जाने का सदा भय बना रहेगा, जिससे मैं सच्ची बात न कह कर ठकुर-सुहाती बात क्टूगा । क




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