श्रीमद भगवत गीता | Shrimatbhagvat Geeta

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Shrimatbhagvat Geeta by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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चिपय सप्तम अध्याय [ प्रष्ठ ३९६-४४५ | भगवान्‌का वक्ष्यमाण अर्थे धवणाथं सावधान होनेके लिए अर्जुनकों प्रेरित करना सविज्ञान शानके निरूपणकी प्रतिज्ञा काम भादि दोषेति आक्रान्त पुरुषोंके लिए जानकी दुर्लभताका प्रतिपादन अपरा प्रकृततिका निरूपण थे छेत्रशरूपा परा प्रझुतिका निरूपण उक्त दो प्रकारकी प्रऊृतियोंक्षि कार्यों का प्रदर्शन दष्टान्तपूवक शश्वरकी षर्वनगदाधारताका प्रतिपदन चार इ्लोकोसि जल आदिमे कारणीभूत रष आदिरूपसे मगवान्‌क्ी स्थितिका प्रतिपादन 1 सा्विकादि मेदो भिन्न सारा जगत्‌ रहार ष्टी दै भौर ब्रह्मम जगत्‌ नदीं दे, यह कथन स लोगोंकी ईइवरानभिज्ञतामें हेतु-कथन भगवान्की शरण पाकर तच्वन्तान द्वारा सुक्ति दोती है, इस विषयका प्रतिपादन आसुरभावको प्रास्त नराधमोी ईख्वरोपासनामें प्रवृचिकफे भमावका कथन आतं आदि चार प्रकारके पुण्यवार्नोकी भगवदू-मजनमे प्रवृत्तिका कथन ज्ञानी भक्तफी अन्य तीन मक्तोकी अपेश्चा भेष्ठताका प्रतिपादन शानीकी भगवद्भुपताका प्रतिपादन सव॑न वासुदेवरूपताका ददन फरनेवाकते पुरषक्ी दुकंमताका कथन विवेकशूश्य दूसरे देवता ऑका भाराघन करते ह, यष निरूपण ,„* अन्य देवताओफे आराघनमे अन्तर्यामी द्वारा घद्धाप्रदाननिरूपण अन्य देवाराघनसे काम्यप्राति भी ईश्वरसे शी दोती है, यह निरूपण अन्य देवोपासकफोको नश्वर फलप्रापतिकथनपूवंक ईश्भरज्ञानियोंकी मुक्तिका कथन ५ त रं सदसद्‌विवेकशचून्य महापण्डितोके आत्मज्ञानी न शने देठका प्रदशचेन ईैश्वरफे सरवंप्रकाशरूपसे सर्वत्र रइनेपर भी साधारण जनोंके उसको न जाननेमें देठुकथन ५2 भगवान्‌का अपने्मे अवि्यारूप भावरणके अभावका प्रतिपादन ..* सुख, दुःख भादि दन्द्वोंसे मोहित पुरुषोंमें शानकी अनुस्पत्तिमें देठुप्रदर्शन पुण्यप्रमावसे पापशूल्य हुए पुरुष भगवद्भजन करते हैं, यह निरूपण दो शछोकॉसि मन्दमतियोंके लिए सर्व ब्रहमुद्धिकरणरूप सगुणनद्यो- पासनाका प्रतिपादन क म ग्‌ पृष्ठ श्छोफ ३६६ - १ ३६७ - २ २६८ - ३ ४०९१२ ~४ ४०२५ ४०२३-६ ४०४ - ७ ४०६ ~ ८ ४१२१२ ४१६ ~ १३ ४१८ - १४ ४२१ ~ १५ ४२२ ~ १६ ४२२ ~ १७ ४२५ - १८ ४२७ ~ १६. ४३० “२० ४२१ ~ २९१ ४२३२ - १९ ४२३२ ~ २ ४३६ ~ २४ ४३७ ~ २५ ४३८ २६ ४४० => २७ ४४१ = २८ ४४२ = २६




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