वीरस्तुतिः | Veerstuti
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
414
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)९७
दौररवुति मामपी पुसक देखी, ऐसयक सुनिधीने अन्त परिधमय तयार
धर जम समाजपर उपदार दिया ऐ । तीर्यररों री स्तुति बरना आत्मा रो पपिय
धनाना ट । सीपेपरोंदी स्तुतिकरते हुये उधकोटिपीभाइना शाजाय सो दीर-
षर रदी भतम यनजाती ह । अतः जन समामरों सम्मति देना हूं दि दीर-
प्रमुरी स्तुति हमेशा पढ़ा दर । जेनादाय पूरयधी सययन्ददी सदारा
सम्प्रदायातुयायी--साय जैन मुनि दीरालाज २६-८-१९, भंयाखा दादर
सादिासाशन्रमणभानु पुष्य रयित संस्टत और दिन्दी भापामें
यौरस्दतिका ददन पिपा} समापने दस उपत्रिरे युं श्म प्रकार ठेयनी उठा-
कर लेन संसार पर ही कया यत्क भष्यसाक्षरदशिष्यं पत्या सायल्िदटे।
यट रयनां रोयक आर हुदयक्षम हू, मानिवके शान्तरिक दियार इसका साप्याय
करते दरते भक्तिसागरमें छट्रायमान होने लगते हैं ।
दीरसयुतिषेः पिपयमे येया इतना ही बना दस फ भम सम्पादन
विश्टनङे युगम वलनिर् दंगसे दिया गया हू, झतः स्थानदूपादी जेनसमाजफे
दिये यदद बदे गारबदी वस्तु टै । जेन समाजके सुनि धार्मिद पन्य शष्ठ भयवा
सन्यान्य प्रस्यॉपर रीझा रचना फट भूतसे गये थे । सोराशाहके शनन्तर
सतश्र सद्वि विदसका रत्सजन सच्छा गया था परम्तु पुष्स मिवणने
दीरस्लुतिके प्रभावसे उस कमीकी पूर्दि फर दी । है पुप्फसियर ! साधुदाद
दासन प्रेमी-घनयन्द्र भिक्खु ता० २८-८-२५, इंदौर (मध्यमारत)
सचि, भरीमशेमुपिमुपितदोधा: ! लॉजितपिधाकोपा, ! घियायीताध्याताशेप-
जंनसमुनिप्रवरा ¡ प्रिदिवमस्तु अत्र भवता श्रीमता, यन्मुनि पुद्वेन धीफूल-
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