वीरस्तुतिः | Veerstuti

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Veerstuti by मदनलाल जैन - Madanlal Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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९७ दौररवुति मामपी पुसक देखी, ऐसयक सुनिधीने अन्त परिधमय तयार धर जम समाजपर उपदार दिया ऐ । तीर्यररों री स्तुति बरना आत्मा रो पपिय धनाना ट । सीपेपरोंदी स्तुतिकरते हुये उधकोटिपीभाइना शाजाय सो दीर- षर रदी भतम यनजाती ह । अतः जन समामरों सम्मति देना हूं दि दीर- प्रमुरी स्तुति हमेशा पढ़ा दर । जेनादाय पूरयधी सययन्ददी सदारा सम्प्रदायातुयायी--साय जैन मुनि दीरालाज २६-८-१९, भंयाखा दादर सादिासाशन्रमणभानु पुष्य रयित संस्टत और दिन्दी भापामें यौरस्दतिका ददन पिपा} समापने दस उपत्रिरे युं श्म प्रकार ठेयनी उठा- कर लेन संसार पर ही कया यत्क भष्यसाक्षरदशिष्यं पत्या सायल्िदटे। यट रयनां रोयक आर हुदयक्षम हू, मानिवके शान्तरिक दियार इसका साप्याय करते दरते भक्तिसागरमें छट्रायमान होने लगते हैं । दीरसयुतिषेः पिपयमे येया इतना ही बना दस फ भम सम्पादन विश्टनङे युगम वलनिर्‌ दंगसे दिया गया हू, झतः स्थानदूपादी जेनसमाजफे दिये यदद बदे गारबदी वस्तु टै । जेन समाजके सुनि धार्मिद पन्य शष्ठ भयवा सन्यान्य प्रस्यॉपर रीझा रचना फट भूतसे गये थे । सोराशाहके शनन्तर सतश्र सद्वि विदसका रत्सजन सच्छा गया था परम्तु पुष्स मिवणने दीरस्लुतिके प्रभावसे उस कमीकी पूर्दि फर दी । है पुप्फसियर ! साधुदाद दासन प्रेमी-घनयन्द्र भिक्खु ता० २८-८-२५, इंदौर (मध्यमारत) सचि, भरीमशेमुपिमुपितदोधा: ! लॉजितपिधाकोपा, ! घियायीताध्याताशेप- जंनसमुनिप्रवरा ¡ प्रिदिवमस्तु अत्र भवता श्रीमता, यन्मुनि पुद्वेन धीफूल- चन्ेण रद्दि्तं ममा फ्रस्दनक चायं मपा सम्यद्ममवरोि, यन्निधिने सस्नान्ते यदनन्दाब्य शिक्षयति जनसुनीन यदीरसन गुदग्य भव्यं न्यरद्नेय च दिष्येल, येहि मुनद॒ पूर्वमररीदयद दिष्यान्दी क्षति तेइचिरडेड पक्ष प्रयरस्त तन्‌ एपा सुनान्द्रचिन' हति समय ययति ये से 'जिनयस चर कक + ॥ -\।५४ 4५ कर नल सतत न „ ^ दद्र ~न १ रनक हा म जगत चः ज = सरग्य्य क ~ उ + भैष ननम गर न ॐ 4 ि नरकः मै नीक रः ` पम गान न > छ ~ =` | खेर पोल के मद रस कं हें. योगी ० क म श, नक हें प्न्य चदं +- न“ * = >» ~~ दा-' पर „८ ^ =^ --. - ;-गचचा4- -=- > न= क 7 ५ ˆ उने ह+ सम्भग्न ॐ - ५ मून ङ-व~ 47 ~न क त= र ध न दयाय नषु वह ्दरः ~~ ~ ~~~ पण्डन-इंसराज दास््ी . ब्याकरणग्त . स्पाहित्यावाय ध्य १




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