प्रश्नोपनिषद् | Prashnopanishad
श्रेणी : धार्मिक / Religious, हिंदू - Hinduism
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
135
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)६ प्रभ्नोपनिषद् [ शरश्च श
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अथ संवत्सरादृष्वं कबन्धी, तदनन्तर एक वर्ष पीछे
1 का बर्न्ध [
कात्यायन उपेत्योपगम्य पप्च्छ ` कात्यायन केजन्धीने { शुरुजीके 1
, समीप जाकर पूछा--“भगवन् !
पृष्टवान् । हं मगवन्कुतः कसाद्् यह ब्राह्मणादि सम्पूर्ण प्रजा किससे
वा इमा नाङ्मणाययाः प्रजाः प्रजा- , उत्पन्न होती है ® अर्थात् अपर-
यन्तं उपपद्यन्ते । अपरविद्या- ब्रह्मविषयक ज्ञान एवं कर्मके
णोः समचितयोर्थत्छषं ' समुच्चयका जो कार्य है और उसकी
केमेणोः सयुचितयोयत्कछायं या
दि , जो गति है वह बतलानी चाहिये ।
गतिसतदक्तव्यमिति तदर्थोभ्यं उसके च्थि यष प्ररन किया गया
प्रश्न ॥ ३॥ हैं॥ ३ ॥
69
राथि ओर प्राणका उत्पत्ति
तस्मे स होवाच प्रजाकामो वै प्रजापतिः स तपोऽ
तप्यत स तपस्तप्त्वा स मिथुनमुत्पादयते । रयिं च प्राणं
चेत्येतौ मे बहुधा प्रजाः करिष्यत इति ॥ ४ ॥
उससे उस पिप्पढाद मुनिने कहा--'प्रसिद्ध है कि प्रजा उत्पन्न
कःरनेकी इच्छावाटे प्रजापतिने तप किया । उसने तप करके रयि ओर् प्राण
यह जोडा उत्पन्न करिया [ ओर सोचा---) ये दानं दी मेरी अनेक प्रकारका
प्रजा उत्पन्न करगे ॥ ४ ॥
तसा एवं प्रष्टवते म होवाच | अपनेसे इस प्रकार प्रन करने-
वाठे कत्न्धीसे उसकी राङ्का निवृत्त
तदपाकरणायाह । प्रजाकामः करनेके छिये पिप्पलाद मुनिने
कहा--प्रजाकाम अर्थात् अपनी
प्रजा रचनेकी इच्छावाले प्रजापतिने
पतिः सर्वात्मा सझ्गत्सशष्यामि | मैं सर्वात्मा होकर जगत्की रचना
प्रजा आत्मनः सिसृक्षुवें प्रजा-
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