मुद्राराक्षस नाटकम | Mudrarakshasa-Natkam

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Mudrarakshasa-Natkam by तारिनीश झा -Tarinish Jha

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ११ ) का, विशेष रूपसे श्युगार रस-प्रघान हपकों मेँ । नायक की पत्नी अथवा प्रेयसी कोदही नायिका कहा जाता है । नायक के सामात्य गुणों का नायिका मैं भी होना आवश्यक है! नायिका के तीन प्रकार माने गये हैं :--(१) स्वकीया, (२) परकीया तथा (३) सामान्या । स्वकीया अपनी स्वी, परकीया परायी स्त्री जथवा कन्या तथा सामान्या किसी की भी स्त्री नही हुआ करती है । (१) स्वकीया नाधिका--यह नायिका शील, लज्जा आदि गुणों से युक्त होती है । यह पतित्रता, सच्चरिता, अकुटिला, लञजायुक्त तथा पति के प्रति व्यवहार में कुशल और पति-सेवारत होती है :-- ' विनयाजंवादियुक्ता गृहकर्मपरा पतिव्रता स्वीया | | सा० द° ३।५७ ॥ (२) परकीया नायिका इसके दो प्रकार होते ईै-- (१) उडा, (२) अनूढा 1 किसी दूसरे की विवाहिता ख्री ऊढा की श्रेणी में आती है तथा किसी की अवि- वाहित पत्री (कन्या), अनूढा की श्रेणी में जाती है :-- परकीया द्विधा प्रोक्ता परोढा कन्यका तया | यात्रादिनिरताऽन्योढा कुलटा गलितच्रपा ॥ कन्या त्वजातोपयमा सल ञ्जा नवयौवना ।।”' सा० द° ३।६६-६७। (३) सामान्या नाचिका--यह साधारण स्त्री होती है 1 गणिका की गणना इसके अन्तर्गत आती है । धन की हप्टि से यह केवल वाह प्रेम को ही प्रकट किया करती है :-- “साधारण स्त्री गणिका कलाप्रागल्भ्यधौ्य॑युक. 11 ।। दशरूपक २।२१ 1 रस सामाजिको अथवा दर्शवो के हृदय मे रसोद्रेक उत्पन्न करना, हुश्य- काव्य का प्रधान उद्देश्य हुआ करता है । किन्तु रस का उतना ही परिपोष किया जाना उचित है कि जिससे कथावस्तु विच्छित्न न होने पाये । नाटक के लिए जितना भावश्यक तत्त्व *रस' है उतना ही आवश्यक तत्त्व वस्तु (कथानक) भी है। दोनों ही परस्पर एक दूसरे के सहायक हैं । कथावस्तु का सम्यक्‌ एवं आकर्षक




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