ऋषि सम्प्रदाय का इतिहास भाग 2 | Hrishi Sampraday Ka Itihas Vol. - Ii
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
19 MB
कुल पष्ठ :
456
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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ऋषि-सम्प्रदाय का इतिहास
युवं -पीठिका
निष्पक्ष और उदार भावना से जैनघ्म श्र इतर धर्मों के
स्वरूप के महत्त्वपूर्ण अन्तर को समक लिया जाय तो जेनधघर्म की
अनादिता को समभे मे कोद कठिना नहीं हो सकती । जैनधर्म
कोई पंथ या मत नहीं है चौरन वह इतर धर्मों की भांति किसी
च्यक्ति या पुस्तक पर निर है । बेदधमं के छानुयायी सानते है--
'नोदनालक्षणो धमेः ।› अथात् वेद् नामक पुस्तकों से प्राप्त होने
वाली प्रेरणां ही धमं है । यह् वैदिक धमं है । इस व्याख्या से स्पष्ट
है कि वैदिक धमं वेद् के अस्तित्व पर जीनित दै । जव वेद् नही थे
तो वैदिक ध्मभोनदींथा। वेद् के गद् इस धमंकाप्रादुर्भाव
हुआ । इसी प्रकार वौद्ध धमं का महात्मा गौतमबुद्ध से प्रादुर्भाव
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हुआ है । उनसे पदले बौद्धघ्म के अस्तित्व का कोई प्रमाण नहीं है ।
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