आधुनिक राजनीतिक संविधान | Adhunik Rajneetik Sambidhan

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Adhunik Rajneetik Sambidhan by सी॰ एफ॰ स्ट्रॉंग - C. F. Strong

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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1 आधुनिक राजनीतिक संविधान ४. विधि ओर रूट अतः, अन्य प्रकार के समदायों से भिन्न राज्य का मूल तत्त्वं उसके सदस्यो हारा विधि का पालन हं । चकि, राज्य, शासक ओर शासितो मे विभक्त, एकं प्रादेशिक समाज हं; अतः, हम विधि की यह्‌ परिभाषा उद्धृत कर सकते हं कि विधि “उन नियमों का सामान्य निकाय है, जो किसी राजनीतिक समाज के शासको द्वारा उस समाज के सदस्यो को सम्बो- धित किए जाते ह ओर जिनका साधारणतया पालन किया जाता है; ” अथवा विधि “कुछ निश्चित प्रकार के कार्यो को करने का या करने से विरत रहने का आदेश हैं, जो किसी निश्चित व्यक्ति या व्यक्तियों के निकाय द्वारा, निकाय के रूप में कायें करते हुए, दिया जाता है और जिसमें स्पष्ट या लक्षित रूप से यह घोषणा होती है कि आदेश का उल्लंघन करनेवाले व्यक्तियों को दंडित किया जाएगा । यह पहले से ही मान लिया जाता है कि दंड की घोषणा करनेवाले व्यक्ति या निकाय में दंडित करनं की शक्ति है ओर उसका अभि- प्राय भी ऐसा ही है । विधि के पीछे बल सदा से ही' सामाजिक बल रहा है। सामाजिक बल अपने- आप में केवल रूढ़ि हैं। जहां कहीं भी कोई समाज विद्यमान हैं, भले ही वह प्राथमिक अवस्था में हो, वहां सामाजिक कामों के लिए रूढ़ियों का अवद्य विकास होगा । अनेकानेक रूढ़ियां बन जाती हे और वे एक प्रकार की अलिखित संहिता का रूप घारण कर छेती हैं, जिनके अनुकूल आचरण पेतुक या धार्मिक सत्ता अथवा सम्बद्ध समुदाय के लोकमत जैसे किसी दबाव के कारण होता हू । इनमें से कुछ रूढ़ियों की सार्वजनिक कल्याणं के किए इतनी' व्यापक उपयोगिता होती है कि उनका सावंजनिक पालन कराने के लिए केवल सामाजिक सत्ता या लोकमत जैसे दबाव से कहीं अधिक शक्तिशाली दबाव की आवश्यकता होती हैं । ऐसी अवस्था में ये रूढ़ियां सामाजिक न' रहकर राजनीतिक-- अर्थात्‌ विधियां--बन जाती हू, जिनका पालन संगठित शासन द्वारा कराया जाता है । यह हुई विधि जो, चाहे वह किसी भी तरीके से स्थापित हौ, राज्य द्रारा समुचित. रूपेण गखित न्यायालयों में प्रवत्तित की जाती है । इसके निम्नलिखित स्रोत हो सकते है :-- (१) रूढ़ि--अर्थात्‌ अलिखित विधि जो निरंतर प्रयोग से प्रवर्त्तनीय हो जाती है; (२) पहले के न्यायाधीशों के लिखित निर्णय--अर्थात्‌ वह जिसे कभी-कभी वाद- जन्यविधि (025९-1), न्यायाधीश-निमित विधि अथवा सामान्य विधि (गभत 1.2५ ) कहा जाता है; (३) संविधि--अर्थात्‌ राज्य के विधानमंडरू या संसद्‌ के अधिनियम । ५. प्रभुत्व हमने ऊपर कहा है कि अन्य समुदायो की तुलना में राज्य का विरोष गुण विधियां बनाने और उनको दमन के ऐसे सब साधनों द्वारा, जिन्हें वह प्रयुक्त करना चाहे, प्रवत्तित




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