बुद्धत्त्व की ओर | Buddhatav Kee Aor

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Buddhatav Kee Aor by बसंत कुमार - Basant Kumar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ ७ 1. (४) तृष्णा के न होने से उपादान नहीं होता अतः तृष्णा का निरोध करना चाहिए । ( १ चेद्ना के न होने से तृष्णा नहीं होती । अतः वेदना का निरोध करना चाहिए । (६) स्पशं॑न होनेसे वेदनान होती) सतः स्पशं का निरोध करना चाहिए । (3) पडायतन नहीं होने से स्पर्श नहीं होता । अतः पडायतन का सिरोध करना चाहिए । (८) नाम रूप के न होने से पडायतन नहीं होता । अतः नाम रूप का निरोध करना चाहिए... (९) विज्ञान के न होने से नाम रूप नहीं होता । अतः चिज्ञान का निरोध होना चाहिए | (२०) नामरूपके न होने से चिज्ञान न होता । अतः नाम रूप का निरोध करना चाहिए । (दीघ निकाथ से ) _ इस प्रकार पक के निरोध से दूसरे का निराघ श्र सबके निरोध से सबका निरोध हो जाता है । दीर्घनिकाय के अनुसार संचित बोद्ध ध्म सत्त धमं जं ~ | र ऋद्धि पाद, (४) पाच इन्द्रिय, (५) पाच बलं (६) सात बोध्यंग जौर (७ ) चय भश्रंगिक मागं । ६




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