बुद्धत्त्व की ओर | Buddhatav Kee Aor
श्रेणी : उपन्यास / Upnyas-Novel
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
42 MB
कुल पष्ठ :
212
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)[ ७ 1.
(४) तृष्णा के न होने से उपादान नहीं होता अतः तृष्णा
का निरोध करना चाहिए ।
( १ चेद्ना के न होने से तृष्णा नहीं होती । अतः वेदना
का निरोध करना चाहिए ।
(६) स्पशं॑न होनेसे वेदनान होती) सतः स्पशं का
निरोध करना चाहिए ।
(3) पडायतन नहीं होने से स्पर्श नहीं होता । अतः
पडायतन का सिरोध करना चाहिए ।
(८) नाम रूप के न होने से पडायतन नहीं होता । अतः
नाम रूप का निरोध करना चाहिए...
(९) विज्ञान के न होने से नाम रूप नहीं होता । अतः
चिज्ञान का निरोध होना चाहिए |
(२०) नामरूपके न होने से चिज्ञान न होता । अतः नाम
रूप का निरोध करना चाहिए । (दीघ निकाथ से )
_ इस प्रकार पक के निरोध से दूसरे का निराघ श्र सबके
निरोध से सबका निरोध हो जाता है ।
दीर्घनिकाय के अनुसार संचित बोद्ध ध्म सत्त धमं
जं ~ |
र ऋद्धि पाद, (४) पाच इन्द्रिय, (५) पाच बलं
(६) सात बोध्यंग जौर (७ ) चय भश्रंगिक मागं ।
६
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