विनोबा के विचार [भाग-2] | Vinouba ke Vichar [Bhag-2]
श्रेणी : शिक्षा / Education, साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
204
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१४ विनोबा के विचार
जव श्ञानी' कहलानेवाले लोग कंसे ऊबने लगते हे, या कमं करनेमें
शरमाने लगते है, तब राष्ट्के पतनका आरभ होता हँ । यह नियम गिबनने
रोमके इतिहासमे लिखकर रखा हं, ओर हमारे यदहाके सारे सतो, कवियो
ओर आचा्योनिं यही बात एक स्वरसे कही हं । “जो कमेको छोटा समभ
चलते है, वे गवार है, ज्ञानी नही ।' यहं वाक्य तो ज्ञानियोके राजा खुद
ज्ञानेश्वर कह गये हं । ओौर “में पहलेके सतोसे राह पूछता हुआ बोल रहा
हु”, यह गवाही उन्होने दी हूं । तिलक भी वही बात कहना चाहते थे ।
लेकिन उन्हें कुछ ऐसा मालूम हुआ कि इस सिद्धातके प्रतिपादनमें वह अकेले
पड गये हे, उनका कोई सहायक नही हं । इसी धारणाके कारण उन्होने
खीभ-खीभकर बडे आवेडमे अपने मतका प्रतिपादन किया है । इसके
किए जिम्मेवार कौन हं ?--गुलाम रोगोका बावला ससार ओर दुबल
परमाथं ।
३
सच तो यह है कि ज्ञान न तो कर्म से डरता है, न उसे अपनी शान के
खिलाफ समभता हैं । यह नियम सामान्य ज्ञान पर ही नहीं, ब्रह्मज्ञानपर
भी घटित होता हं । मनुष्य जितना ज्ञानमे घुल गया हो, उतना ही वह कर्मके
रगमे रग जाता है। यह सच है कि ज्ञान उदय होते ही कर्मका भभट अस्त
हो जाता हे । लेकिन कर्मके भटके अस्त होनेके माने कर्मक ही अस्त होना
नही ह । उसका अर्थ है कि कर्म सहज हो जाता हैं। आइए, हम कुछ ज्ञानियो
की ही गवाही ले ।
पहली गवाही श्रीकृष्णको ले । वह कहते है, “मन ष्यके चित्तमें ज्ञानका
उदय होते ही में तत्क्षण अस्त हो जाता है । इसीलिए लोगों के लिए सहा-
नुमूति पदा हो जाती हं ओर साहस तथा उत्साहक किरणोके फूट पडनेके
कारण भय और लज्जाका प्रन ही नही रह जाता । एसी अवस्थामे ज्ञानी
दने जोरसे कमं करने लगता हैं । भूतदयाके कारण उसका शरीर लोक-
सम्रहमे अभ्यस्त हौ जाता है।” इस सिलसिले मे उन्होंने महाराजा जनकका
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