विनोबा के विचार [भाग-2] | Vinouba ke Vichar [Bhag-2]

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१४ विनोबा के विचार जव श्ञानी' कहलानेवाले लोग कंसे ऊबने लगते हे, या कमं करनेमें शरमाने लगते है, तब राष्ट्के पतनका आरभ होता हँ । यह नियम गिबनने रोमके इतिहासमे लिखकर रखा हं, ओर हमारे यदहाके सारे सतो, कवियो ओर आचा्योनिं यही बात एक स्वरसे कही हं । “जो कमेको छोटा समभ चलते है, वे गवार है, ज्ञानी नही ।' यहं वाक्य तो ज्ञानियोके राजा खुद ज्ञानेश्वर कह गये हं । ओौर “में पहलेके सतोसे राह पूछता हुआ बोल रहा हु”, यह गवाही उन्होने दी हूं । तिलक भी वही बात कहना चाहते थे । लेकिन उन्हें कुछ ऐसा मालूम हुआ कि इस सिद्धातके प्रतिपादनमें वह अकेले पड गये हे, उनका कोई सहायक नही हं । इसी धारणाके कारण उन्होने खीभ-खीभकर बडे आवेडमे अपने मतका प्रतिपादन किया है । इसके किए जिम्मेवार कौन हं ?--गुलाम रोगोका बावला ससार ओर दुबल परमाथं । ३ सच तो यह है कि ज्ञान न तो कर्म से डरता है, न उसे अपनी शान के खिलाफ समभता हैं । यह नियम सामान्य ज्ञान पर ही नहीं, ब्रह्मज्ञानपर भी घटित होता हं । मनुष्य जितना ज्ञानमे घुल गया हो, उतना ही वह कर्मके रगमे रग जाता है। यह सच है कि ज्ञान उदय होते ही कर्मका भभट अस्त हो जाता हे । लेकिन कर्मके भटके अस्त होनेके माने कर्मक ही अस्त होना नही ह । उसका अर्थ है कि कर्म सहज हो जाता हैं। आइए, हम कुछ ज्ञानियो की ही गवाही ले । पहली गवाही श्रीकृष्णको ले । वह कहते है, “मन ष्यके चित्तमें ज्ञानका उदय होते ही में तत्क्षण अस्त हो जाता है । इसीलिए लोगों के लिए सहा- नुमूति पदा हो जाती हं ओर साहस तथा उत्साहक किरणोके फूट पडनेके कारण भय और लज्जाका प्रन ही नही रह जाता । एसी अवस्थामे ज्ञानी दने जोरसे कमं करने लगता हैं । भूतदयाके कारण उसका शरीर लोक- सम्रहमे अभ्यस्त हौ जाता है।” इस सिलसिले मे उन्होंने महाराजा जनकका




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