कवित्त - रत्नाकर | Kavitt - Ratnakar
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
336
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भूमिका
अधिक मिलता है । कवि ने रुचि के ्रतुसार नायिकाओं के कुछ मेदों को
चुन कर उन पर थोडे से कवित्त लिखे ह । श्रवस्या की दृष्टि से “मुग्धा” पर
कुछ छद प्रात दोते हैं और उनमें मे दो एक श्रत्यत सुन्दर वन पढे हैं--
„~ लोचन जुगल थोरे थोारे से चपल, सो
सामा सन्द पचन चलत जलजात की |
पीत है कपोल, तद्ये श्या घरुनाई नई,
ताहो दति करि सचि श्राभा पात पातकी ॥
सेनापति काम भूप सोचत सो जागत है,
उञ्वल विमल दुति पै गात गात की ।
सेसव-निसा श्रथांत जोवन दिन उदौत,
बीच वाल दधु कौ; पाद परभात्त की * 1)
“काम भूप सोवत सो जागत है” कद कर वयःसधि को वडी ही उन्त-
मता से व्यजित किया गया है, साथ ही प्रभात के रूपक के विचार से भी वह
नितात उपयुक्त है ।
'खडिता” के वणुनों में कुछ कवियों ने महावर झ्रादि के वणन के
साय साय दत चत, नख चत श्रादि का वणंन भी वडे समारोह के साथ किया
दै । सेनायाति ने भी एक कवित्त में ऐसी ही तत्कालीन अभिरुचि का परिचय
दिया है--
विन ष्टी जिर€, दयियार विन ताके श्रव)
भूलि मति जाह सेनापति समा हौ ।
करि टारी छाती घोर वादन से राती राती
सोहि धो वतावाकोन भोतिदुटिश्राषएुष्टौ।
पौद़ौ वलि सेज, करौ श्रौपद की रेज वेगि,
म तुम जियत पुरधिल्ते पुन्य पाए हो ।
कीने कान हाल | वह वाधिनि दै वाल | ताहि
कोसति हों लाल जिन फारि फारि खाए ष्टौ?
कहाँ तो श््द्वार रस के ग्रालवन विभाव का वणन श्र कहाँ 'वाघिनि
१ दूसरी तरय, छद २६ +
> दूरी परग, छद ३२५
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