मेरी जीवन गाथा | Meri Jeevan Gatha

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Meri Jeevan Gatha  by गणेशप्रसाद जी वर्णी - Ganeshprasad Ji Varni

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रस्तावना हिन्दी भाषामें आत्म-कथाओंका अभाव हु । अनी दो तषं पूवं देशरत्न डा० राजेन्द्रप्रसादकी आत्म-कथा प्रकाशित हुई थौ इसी प्रकारकी एकाध ओर पुस्तकं हं ' । वर्णोजीने अपना आत्म-चरित लिख- कर जहां जन-समाजका उपकार किया हं वहां हिन्दीके भंडारको भी भरा हैं । एतदर्थ वे बधाईके पात्र ह । श्रीमान्‌ वर्णोजोसे मेरा परिचय किस प्रकार हुआ इसका उल्लेख उन्होंने स्वयं इस ग्रन्थमे किया हे । इसमें कोई सन्देह नहीं कि मेरा हृदय उनके प्रति अत्यन्त श्रद्धालु हं । राजनीतिक कषेत्रम काय करते रहनेके कारण मेरा सभी प्रकारके व्यक्तियोसे सम्बन्ध आता हं । साधरवभाव व्यदितयोको ओर मं सदा ही आकर्षित हो जाता तरे । प्रातः स्मरणीय महात्मा गांधीके लिए मेरे हृदयमें जो असीम पे ५ श्रद्धा है उसक। कारण उनका राजनीतिक महत्त्व तो कम और उनके चरित्रकी उच्चता ही अधिक रही हूं । उनके सामने जाते हो मुझे ऐस्शर अनुभव होता था कि में जिस व्यक्तिसे मिर रहा हूं उसने अपने सभी मनोविकारोंपर विजय प्राप्त कर ली है। वर्णीजीके संपर्क में से अधिक नहीं आया परंतु मिलते हो मेरा हृदय श्रद्धासे भर गया) उन्होंने जबलपुरके जैन समाजके लिए बहुत कुछ किया ह जिससे भी में भलीभांति परिचित हूं । इसीलिए कुछ जन मित्रोंन जब मुझसे इस म्रन्थकी प्रस्तावना लिखनेका आग्रह किया तब समयका अभाव रहते हए भी मे नहीं न कह सका । बचपनमें जब में रायपुरसें पढ़ता था मेरे पड़ोसमं एक जन गृहस्थ रहते थ । उनके पाससे मं जन धर्म संबंधी पुस्तकोंको लेकर पढ़ा करता था। १ सर्वप्रथम आत्मकयाकें लिखनेका श्रेय कविवर बनारसी- दासजीकों हे यह हिन्दी कवितामं हं ओर अध कथानकके नामसे प्रसिद्ध हं । कविवर बनारसीदासजी कविवर तुलसीदासजोके समकालीन हु ।




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