हिंदी संत-काव्य में अप्रस्तुत-योजना | Hindi Sant-kabya Me Aprustut - Yojana

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Hindi Sant-kabya Me Aprustut - Yojana by दीपिका बनर्जी - Deepika Banarji

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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डा० रघुवश मे काव्य को सामजस्य माता है | ये कहते है कि काव्य सोन्दर्य- व्यजना है । सौस्वर्य कौशल को निप साधना में कला को जस्म देता है और कला जब सौन्दर्य के उपकरण से समन्वय उपस्थित कर हेती है, बच काव्य - सौन्दर्य हो जाता है । ,.... काव्य में ध्वनि का व्यंग्य का आजय ठेना पढ़ता है । यह ध्ननि जब सौन्दर्य को व्यलना- करती है, तमो काण्य है स 1 साचिल्यिक अनुधत्ति रागबोधक होतो है । उस अनुधूत्ति में रागतत्व तथा बोध- तत्व विधिवत दो कर जाते है, अहग नहीं । हस प्रकाए काव्य काँवि की स्वा- गुप्नुतति है, भाणत के माध्यम से उपस्थित को हुई श्पाल्मक अभिव्यक्ति है और इस काव्य को अभिष्यत्विति का अर्थ है, स्वेदनरीएता । काष्यपौन्ययै,अनुगुतति, अिमिव्यतिकित तथा प्रमावात्सक संवेदना तोनों से ही परष्बसिवित ह ५ काव्य-शास्त्र के समा सम्प्रदायों में अनुभूति और अभि 'व्य्ति के धारा सौस्दर्य बोधात्पक पद को हो व्यक्त किया गया है काय्य षे सन्धय छा बोषात्मक पदा अकार्‌, रोति, वक्रोनित, ध्वभि, एष के माभ्यम तै अमिव्यवत हवा हे । काव्य का सौन्दर्यं भाव गौ संवेदना से सम्बद्ध है ।वतः काव्य मे 7मणयता हाने के हलर कवि क्का का बान्यठेता है । काव्य बौर अकार | 8 | 51 8 118 2 राजकेशर भे जहका -शास्त्र कौ वेद का सातवां बन माना है । वेदों के प को मही पाति सपमे के छिर अलकार-शास्त्र का ज्ञान अत्यावश्यक दै । वैबककारु से ही अठकारों का प्रयोग किसी मे किसी क्प मे होता रशा है । उपभा ,सपक,यमक अठकारों का प्रयोग सण्वेद के मो मेहना हे । निवत, शतफलासण, दान्दोग्यउपनिणद में अहकाए शब्द आया दै । १ डर एक ‡ ^करकृति बौ काज्यं , प०६५ । ३ षी १०५५ । 2 राच : ^ काष्यमौ पासा , 7८६०५ १पु% ६ ।




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