ऋग्वेद के पंचम - मण्डल का आलोचनात्मक अध्ययन | Rigwed Ke Pancham Mandal Ka Alochanatmak Adhyayan
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
23 MB
कुल पष्ठ :
295
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)अनुवाक् मे भी एक वश के ऋषियों के सुक्त रखे गये है। यदि ऋषि के सुक्त की सख्या कम हैं तो उन्हे अलग
अनुवाक म॑ रखा गया है जबकि अष्टको, अध्यायो एव वर्गों का प्रारम्भ एव समापन विना किसी नियम के हो जाता
है। शौीनक के अनुसार ऋग्वेद मे १०५८० १/४ मन्त्र है जब कि चरण्यव्युह के अनुसार १०६८१ मन्त्र है। सम्प्रति
ऋग्वेद मे १०८५२ मन्त्र, १५८३८२६ शब्द तथा ४३२२००० अक्षर प्राप्त होते है।
१.६ ऋग्वेद का काल -निर्घारण-
ठोस साक्ष्य न मिलने के कारण ऋग्वेद का कालनिर्धारण अत्यन्त दुष्कर कार्य है। संक्षेप मे कुछ विद्वानों का
निष्कर्षं विचारणीय है। वेद को अनादि * एवं सृष्टिपर्व माना गया है। बालगंगाधर तिलक ने ज्योतिष के आधार पर
ऋग्वेद का काल ६०००-४००० ई० पु० माना है। अविनाश चन्द्र दास ने भूगोल का आधार मानकर ऋग्वेद का काल
लाखो वर्ष पूर्व होना निश्चित किया हे। मेक्समूलर ने १२०० ई०प्० ऋग्वेद का काल निर्धारित किया था। उसे निर्धारण
के ३० वर्ष पश्चात् मेक्समूलर ने ऋग्वेद को ३००० ई० प्० से पहले का माना है। मेकडानल ने १३००१००० ई० प°
व्यूलर ने २००० ई० प०, याकोबी ने ३००० ई० पु०,प्रेडर ने २००० ई० पृ० का ऋग्वेद को माना है। काल निर्णय के
विषय मे ऋग्वेद का ई० प° होना एकमत से स्वीकारा गया है। ऋग्वेद के सभी मन्त्रो की रचना एक समय मे नही
हुयी। २ से ७ मण्डल अधिकं प्राचीन है जबकि प्रथम ओर दशम- मण्डल परवती माना गया हे। ऋग्वेद के काल
निर्धारण के विषय मे बेबर का कथन उचित ही है ~ ॥.. ...0166 7106 पि शा([४ ५१८ ताज (10 ५ ।
वैदिक साहित्य के अन्तर्गत १६५१ ई० मे अब्राहम रोजन ने ब्राह्मण साहित्य पर पुस्तक“ लिखी। हेनरी
थमस कल्क ने वेदो पर संक्षिप्त निबन्ध लिखा। १८०८ ई० मेँ एीडिकि श्लीगल ने भारतीय भाषा विज्ञाभ पर
पुस्तक ` लिखी। इस पुस्तक में भाषा विज्ञान के अतिरिक्तं रामायण, महाभारत, अभिज्ञानशाकुन्तलम् तथा मनुस्मृति के
कुछ अशो का अनुवाद है। वेदाध्ययन की दृष्टि से १८२८-१८६३ महत्वपुर्ण रहा। १८३८ ई० मे एडक रोजन ने
~ « अनादिनिधाना नित्या वागुसृष्टा स्वय॑भुवा।
आदौ वेदमयी दिव्या यतः सर्वाः प्रवृत्तय॥
नाम रूप च भूतानां कर्मणां च प्रवर्तनम्।
वेद शब्देभ्य एवादौ निर्ममे स मषेश्वरः॥
सर्वेषा तु नामानि कर्माणि च पृथक् पुथङ्।
वेदशब्देभ्य एवादौ पृथक्संस्थाश्च निर्ममे ब्रह्मसूत्र १/२/२८।
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