यजुर्वेदभाषाभाष्य भाग - 2 | Yajurvedabhashabhashya Bhag -2

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Book Image : यजुर्वेदभाषाभाष्य भाग - 2  - Yajurvedabhashabhashya Bhag -2

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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यज्ुचद्‌ भ श्य ४५३३ एसत्कार प्राप्त ( श्रायच्छुद्धयः) दुरो कोशुरे कमो स रोकने बार्लो को (नभः) अन्न देते (च) श्रोर ( अस्यद्कयः ) दुर्घो पर शल्लादि को छोड़ने बलि (वः) तुम्हरे लिये ( नमः) सत्कार कर्ते हैः ॥ २२॥ भावाथे:--राज चोर प्रजा के पुरुषों को चाहिये कि प्रधान पुरूष आदि का वस्र भौर अन्नादि के दान से सत्कार करें ॥ १९ ॥ नमे विसृजद्धय इत्यस्य इर ऋषिः । शद्रा देवताः । निचुद्तिनगतीच्न्दः । निषादः स्वरः ॥ फिर भी बद्दी वि० ॥ और सुजदूण्यों विदृध्यद्स्यव्य चौ नो नमः स्वपद्भ्यो जाग्र ९ मनक 4 3, # जि ४५१ द्भ्यश्च वो नयो नः शयनिभ्य चसीनेभ्यश्च वो नमो नमस्ति- छंद्भ्छौ धाव॑द्‌भ्यय् डो न॑ः ॥ २६ ॥ पद।थैः- ह मचुष्यो तुम देखा खवको जजास कि इम लोग (विख्जद्भ्यः) शञ्श्चो पर शस््ादि छोड्ने चालला को (नमः) अन्नादि पदाथ (च ) रोर ( विद्धयदुभ्यः) शसो स शर्या को मारते हुड (वः) तुभको ( नमः ) न्न ( स्वपदुभ्यः ) खोते इर्यो कै लिये (नमः) चच्न ( च ) भ्नौर ( जाब्रदुभ्यः ) जागते दुर ( वः ) तुम को ( नमः ) शन्न (शया- नेभ्यः) निद्रालु को (नमः) अन्न (च ) और ( आसीनेभ्यः) आसन पर बेटे हुए (षः) तुम को ( नमः) अन्न ( तिष्ठदुभ्यः ) खद हुरो को (नमः) रन्न (च) और ( घाबदुस्य: ) शीघ्र चलते हुए (व! ) तुम खोगें। को (नमः) अन्न देवेगे ॥ २३ ॥ भावाथैः-- गृहस्थो को चाहिये कि करुणामय वचन बोल श्र अन्नादि पदार्थ देके सतम भ्राणि्ये( को सुखी कर्ये ॥ २२ ॥ नमः समाभ्य इत्यस्य कत्य ऋषिः । रुद्रा देवताः । श्री इन्दः । धैवतः स्वरः ॥ फिर भी वष्ठी बि० ॥। नस ससास्य: समापंतिभ्यख् चो नमो नमो श्वेभ्योर्वपतिभ्यश्य यो नमो नम॑ आव्याधिनीम्धो विविध्यन्तीभ्यश्व वो नमो नम ठग णाभ्यस्तृ ४डतीभ्य॑सश्व वो नभः ॥ २४॥ पदाथः-- मन्यो को सव के प्रति पेच कष्टक चादिये कि इम लोग (सभास्यः) न्याय आदि के पकाश से युक सियो क! (नमः) खत्ार (च) चोर (खमापविभ्यः) खमाश्ना




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