जैन निबन्ध रचनाकर | Jain Nibandh Ratnakar
श्रेणी : धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
356
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)॥ सत्तत््व मीमांसा ॥
॥ लेखक श्रीमडिजय कमलसूरिधिर चरणोपासक
सुनि रुष्धिविजय ॥
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भिय पाठकगण } इस दुनिया मुख्यतया दो तरह के
धर्म गरचलित द । एक सम्यक्ल धर्मं ओर दुसरा मिथ्यात्व धम ए
उस जगतर्भे अनादि कफाटसे यह दोनों दी धर्म उपटन्प होते ६;
ओर यह आपस से पिल रहते दै फ़ याद एर धमौव्-
छवी ओय (रुप्य) दूसरेते एकी समयमे ओर एकदी नगदपर
मिले तोये आपसे शान्ति पूवक चिना क उपद्रव श्रिये नदीं
ग्ह सक्ते! ओर रेसेमं जिस धमीवलम्बीकी शाक्ते दसरेसे
अधिक पछगान_दोती है बह अपनी सत्ता दूसरोपर स्थापित
फर देता है । ~
सम्यप्त्य ॐ उदयम जीव अपने दिनो षडे सखे
, व्यतीत करतादै जीर मरनेपरभी अन्ी गतिश माप्त होते,
और इस धर्म रो हरदम टयम रसनेबाल्य प्राणी येडे दी
समयमे मोक्न रपर भवरो के वोचे पदी हुड अपनी टूटी एूदी
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