जैन निबन्ध रचनाकर | Jain Nibandh Ratnakar

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Jain Nibandh Ratnakar by कस्तूरचन्द्र जैन - Kasturchand Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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॥ सत्तत््व मीमांसा ॥ ॥ लेखक श्रीमडिजय कमलसूरिधिर चरणोपासक सुनि रुष्धिविजय ॥ 05 भिय पाठकगण } इस दुनिया मुख्यतया दो तरह के धर्म गरचलित द । एक सम्यक्ल धर्मं ओर दुसरा मिथ्यात्व धम ए उस जगतर्भे अनादि कफाटसे यह दोनों दी धर्म उपटन्प होते ६; ओर यह आपस से पिल रहते दै फ़ याद एर धमौव्‌- छवी ओय (रुप्य) दूसरेते एकी समयमे ओर एकदी नगदपर मिले तोये आपसे शान्ति पूवक चिना क उपद्रव श्रिये नदीं ग्ह सक्ते! ओर रेसेमं जिस धमीवलम्बीकी शाक्ते दसरेसे अधिक पछगान_दोती है बह अपनी सत्ता दूसरोपर स्थापित फर देता है । ~ सम्यप्त्य ॐ उदयम जीव अपने दिनो षडे सखे , व्यतीत करतादै जीर मरनेपरभी अन्ी गतिश माप्त होते, और इस धर्म रो हरदम टयम रसनेबाल्य प्राणी येडे दी समयमे मोक्न रपर भवरो के वोचे पदी हुड अपनी टूटी एूदी




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