जैनशिक्षादिग्दर्शन | Jainshikshadigdarshan
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
48
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(१७ )
इस रीति से सर्वक्ञ भगवान मे अठारह दूषणो का
अभाव युक्तिसिद्ध क्या गया है। और इसी तरद अष्ट-
कर्मौका अभाव जव उनमें होता है तभी वे अन्तिम
झारीर का त्याग करके सुक्ति को धघाप्त होते हैं और तभी
सिद्ध गिने जाते हैं ।
देहयुक्तदशा में तीथकर: अहन. देव कहे जाते हैं और
देदसुक्तदच्ा में सिद्ध गिने जाते ई। इस समय चौवीस वें
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