जैनशिक्षादिग्दर्शन | Jainshikshadigdarshan

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : जैनशिक्षादिग्दर्शन  - Jainshikshadigdarshan

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about अज्ञात - Unknown

Add Infomation AboutUnknown

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
(१७ ) इस रीति से सर्वक्ञ भगवान मे अठारह दूषणो का अभाव युक्तिसिद्ध क्या गया है। और इसी तरद अष्ट- कर्मौका अभाव जव उनमें होता है तभी वे अन्तिम झारीर का त्याग करके सुक्ति को धघाप्त होते हैं और तभी सिद्ध गिने जाते हैं । देहयुक्तदशा में तीथकर: अहन. देव कहे जाते हैं और देदसुक्तदच्ा में सिद्ध गिने जाते ई। इस समय चौवीस वें




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now