जैनशिक्षादिग्दर्शन | Jainshikshadigdarshan

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Jainshikshadigdarshan by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(१७ ) इस रीति से सर्वक्ञ भगवान मे अठारह दूषणो का अभाव युक्तिसिद्ध क्या गया है। और इसी तरद अष्ट- कर्मौका अभाव जव उनमें होता है तभी वे अन्तिम झारीर का त्याग करके सुक्ति को धघाप्त होते हैं और तभी सिद्ध गिने जाते हैं । देहयुक्तदशा में तीथकर: अहन. देव कहे जाते हैं और देदसुक्तदच्ा में सिद्ध गिने जाते ई। इस समय चौवीस वें




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