स्वातन्त्र्योत्तर हिन्दी कविता में चेतना के नये आयाम | Swatantryottar Hindi Kavita Men Chetana Ke Naye Aayam

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Swatantryottar Hindi Kavita Men Chetana Ke Naye Aayam by गीता सक्सेना - Gita Saksena

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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4 का उतिकृपण कर गया तो हम समस्त विश्व में हो रही घटनाओं से प्रपावित हौते दी ,क्थात्‌ समसामयिक विषयों , समस्याओं को ओर साहित्थयकारों का ध्यान जाना आवश्यक हो नहां , युग की मांग थी । हेक्नि 'दिताय 'विश्वयुद्ध के पर झायावादा काव्य परम्परा का अन्त हो जाता है, ध्सछिर झायावादो कविता मे प्रथम बिश्वयुद्ध तक का प्रभावे क्सि सोमा तक पदुम हि, यह देखना हौग । कायावादों काव्य नयी कविता की पुष्ठपमि पर्‌ विधाएं करते समय सर्वेप्रथम मेरा ध्यान छायावादी काव्य की ओर जाता हे | सम्‌ १६२० के आस-पास ` सरस्वती ओर सतवाठा' मैं पन्त ओर 'निराषा” को जो कलये निकटं एही धोः, ठनदे काल्यके दत्रे नवानता केण) दहन होना पराएम्पदलहयोगया धा | हायावषो काव्य -टरीतिकालोत खवा दिता के विरद पथम अभिव्यमना को का काव्य कहा गया । १६२० से १६३ दण त्क का सामाजिक ऽराजमेतिक+जा शिक पटििभ्थितियां उलन पुष्यो । पथम महासमः समाप्तह शका या, ठेकिमि युदकाटोन संकट में देमिक उपयोग को वस्तुओं की कमो तथा मंहगाई के कारण सपान परस्तथा । कोबौको शासनव्यवस्था के काण मेदन्माव का मो बोठबाला था । समाजमे त~ तह को अवास्या स्वं इुटरौतिया फटी हुर्ठधी । कषक जर भमिरकौ को स्विति णिनि प्रति-दिनं वयनोय हौतो जा ही थी । कुटीर उभोगवन्थ बन्द किये जा रहे थे । माठ्युजा री ,टेक्स स्वं करों से जनता प्रस्त थी । सक बोर ये पारिस्थितियां व्यापक स्प में बढ़ती हो जा रही थी, दुषो ओर इसे महासमर का सय भी समाज के मानस में समाया हुआ था । देश को सामाजिक, राजनेतिक सवं अर्थिक परिस्थितियां शौचनाय होने के कारण हायावादी कवि इन पटििस्थिततिय वे सादा पत्काएं तदों कर सके, दूसरी बात यह मो स्वीकार की जा सकती हे 'कि शस युग के प्रमुख कवियों की बभिः 'व्यबना-प्रणाछी थी नितान्त दुष्प खं म्येप्रकार कौ धी, फलतः डु मधीमता के वगृह होने के कारण तथा कुछ परिस्थितियों के प्रति प्रतिबद्धता ने स्टोकार कर सकने के कारण ये कथि समान 'चियुल होते गये| विश्व की समाज को व देश की




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