संस्कृत - काव्यशास्त्र में प्रतिपादन कवि का सर्जन पक्ष एक समीक्षा | Sanskrit Kavyashastra Men Pratipadit Kavi Ka Sarjan Paksh Ek Sameeksha

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Sanskrit Kavyashastra Men Pratipadit Kavi Ka Sarjan Paksh Ek Sameeksha by गया प्रसाद दुबे - Gaya Prasad Dubey

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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की कल्पना सहदय को करनी पड़ती है। अतः इसके लिए सहदय मे प्रतिभा होनी चाहिए। रसास्वाद के योग्य कौन है? इस सन्दर्भ मे स्वयं आचार्य अभिनवगुप्त कहते है- 'अधिकारीचाऽत्रविमलप्रतिभाशाली सहदयः। इस प्रकार अभिनवगुप्त ने कविप्रतिभा के साथ सामाजिक कौ प्रतिभा को स्वीकार कर न केवल सामाजिक के अनुभव को कवि के समान सिद्ध किया है वरन्‌ उसे रस का आधार मानकर कवि की समकक्षता प्रदान की है) कवि कौ मूलञनुभूति पाये बिना, उसके प्रातिभ आवेश को अपने मे प्रस्फुरित किये बिना, रस कौ सिद्धि नही होती है।* अतः कविप्रतिभा का कार्य सृष्टि है तो सहदयप्रतिभा का कार्य अनुसृष्टि यदि कविप्रतिभा उसके अन्त अनुभूतियो को आस्वादमय रसभावरूप अर्थतत्त्व मे प्रवाहित करती है, * उसे छान्दस्‌ वाणी प्रदान करती है तो सहदय प्रतिभा के बल पर कवि भावो के अन्तः मे प्रविष्ट हो उस प्रतीयमान अर्थतत्व का आस्वादन कर उससे चमत्कृत होता हे। राजशेखर ने सहदय की इस प्रतिभा को भावयित्री प्रतिभा के नाम से अभिहित किया है। साच द्विधा कारयित्री भावयित्री च। कवेरूपकुर्वाणा कारयित्री .............. भावकस्योपकुर्वाणा भावयित्री । सा हि कवेः श्रमाभिप्रायं च भावयति। तया खलु फलितः कवेव्यपारतरूः। ' | अभिनवभारती भाग-१, पृ० २७९ ` प्रतिपतृन प्रति सा प्रतिभा न अनीयमाना अपितु तदावेशेन भासमानाः - ध्वन्यालोक लोचन, प० २९ | ध्वन्यालोक १/६ * काव्यमीमांससा अध्याय- ४, चौखम्बा प्रकाशन, तृतीय सस्करण, पृ० २७




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