सरस्वती एक हिन्दु - गार्हस्य रूपक | Sarasvati Ek Hindu - Garhasy Rupak
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
194
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about पण्डित दुर्गाप्रसाद मिश्र - Pandit Durgaprasad Mishr
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)लव विवि
प्रथस गर्भाक || रूपक । [9
तुमारे दोनों पांव पड़ती हूं; तुम मुंह फुलाकर, मां
चलाकर) आंखें तरेर कर मुफे मत 'घमकाओं, तुम्हारा
रेसा मुंह देखने से मेरा जी डर उठता हे ।
, लचमी- सुनो पंडादन सुनो; चीनी को चासनी भी
चढ़ाती है कांटे भी चुभाती है; मा बनायी जाती हु)
सास बनायी जाती हुं; ओर भी कितना कुछ वनूंगो,
फिर मेरा मुंह देखने से डर थी लगता हे व्यों क्या
मैं शेर हू, भालू हू कि सबको डराती फ़िरती हु ।
पंडाइन-देख छोटी वह मुफे तु जेसी बह्द भी वेसी।
सच्ची वात कहती हू वड़ाई छुटाई माननी चाहिये 1
हजार हो बड़ी जिठानी माके बरावर) उसकी कद्ध
नड़ाई करके 'चल; जो कुछ हो उसी का तो सब कुछ
ड, उसीके घर वाले की सब कमाई है वही तो मालिक
डे, उसको मानना ओर बड़ाई रखनाही तेरा. धरम हे ।
उसे न मानना अच्छा नदीं ।
लचमी--देख पंडाइन मैंने उसे क्या कहा ओर उसने
कहने में कसर क्या स्वी ?
सरस्वती--कहां बेबेजी ! मैंने तुमको बया कहा मैं
ने तो कद्ध नदी कहा ।
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