सरस्वती एक हिन्दु - गार्हस्य रूपक | Sarasvati Ek Hindu - Garhasy Rupak

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Sarasvati Ek Hindu - Garhasy Rupak  by पण्डित दुर्गाप्रसाद मिश्र - Pandit Durgaprasad Mishr

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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लव विवि प्रथस गर्भाक || रूपक । [9 तुमारे दोनों पांव पड़ती हूं; तुम मुंह फुलाकर, मां चलाकर) आंखें तरेर कर मुफे मत 'घमकाओं, तुम्हारा रेसा मुंह देखने से मेरा जी डर उठता हे । , लचमी- सुनो पंडादन सुनो; चीनी को चासनी भी चढ़ाती है कांटे भी चुभाती है; मा बनायी जाती हु) सास बनायी जाती हुं; ओर भी कितना कुछ वनूंगो, फिर मेरा मुंह देखने से डर थी लगता हे व्यों क्या मैं शेर हू, भालू हू कि सबको डराती फ़िरती हु । पंडाइन-देख छोटी वह मुफे तु जेसी बह्द भी वेसी। सच्ची वात कहती हू वड़ाई छुटाई माननी चाहिये 1 हजार हो बड़ी जिठानी माके बरावर) उसकी कद्ध नड़ाई करके 'चल; जो कुछ हो उसी का तो सब कुछ ड, उसीके घर वाले की सब कमाई है वही तो मालिक डे, उसको मानना ओर बड़ाई रखनाही तेरा. धरम हे । उसे न मानना अच्छा नदीं । लचमी--देख पंडाइन मैंने उसे क्या कहा ओर उसने कहने में कसर क्या स्वी ? सरस्वती--कहां बेबेजी ! मैंने तुमको बया कहा मैं ने तो कद्ध नदी कहा ।




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