आत्म जागृति | Aatm-jagrati
श्रेणी : धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
182
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)आत्म-जायूति |
को वरबाद कर. रहा है । यूक्ष की “आयुकर्म, वेदनीय कर्म रूपी”
दो डालियों के सद्दारे मनुष्य लटक रहा हैं। बुश्न में रद्दे हुए
मधु के छत्ते रूपी पुण्य, जिससे टपकती हुई सुख रूप चून्दों का
भोजन कर ममुप्य प्रसन्न ो रहा है। उसके मिठास में वह
आसक्त है, पागठ है। इघर मनुप्य-आयु-वेदनीय रुप दी डालों
को 'दिन था रात रूप' चूहे खाकर नप्ट कर रहे हैं ।
नीचे भयानक संसार समुद्र दै; जिसमें “यारगतिरूप' चार
मगरमच्छ ब्ष से गिरनेवाले मनुष्य की हृड़पने के लिये तैयार
है। छोभी मनुष्य की ऐसी दयनीय दशा देखकर सम्यगूदृप्टि
संत पुरुप उस दिशा-मूढ़ मजुप्य को उसकी दयनीय अवस्था का
भान कराना चाहते हैं, उसे उसकी करणाजनक दशा से सयेत
करना चाहते हैं । ॥
किन्तु घूंद-बूंद सुख में आासक्त मनुष्य फदता हैं, कि जरा
ठद्दरिये, यह. गिरती हुई वृद को लेलूँ। उस वृन्द को लेने के
बाद) सदुरुरु उसे फिर सावधान करते हूँ; छेकिन घारम्बार चद्दी
जवाब .मिठता हैं। देखिये; विचारिये उस मनुप्य की केसी
मूढ़ दशा है ।
भव्य जन | «आप भी अपनी-अपनी छोभ दशा से
तछ्ना करे ! शु सच फो प्रिय दें; फ्योंकि जीव को पुण्य के
फल रूप सुख का स्वाद मीठा ढगता दै। किन्तु जैसे मिठाई
मीठी होने के कारण अच्छी छंगनी है; ठेकिन जरूरत से ज्यादा
, खाने सें आाजाने से छुछ समय के लिये उससे अरूचि दो लाती
म कत
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