पञ्च - प्रतिक्रमण | Panch-pratikraman
श्रेणी : धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
12 MB
कुल पष्ठ :
368
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about पण्डित काशीनाथ जी जैन - Pandit Kashinath Ji Jain
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्रतिक्मण-सूत्र } च
'ज्ञावणिज्ञाए' शक्ति के अनुसार वदिड ` वन्द्न करना श्च्छामिः
चा्ता हः ( सौर ) मव्थपण, मस्तक से र्वदामिः चन्दन करता ट}
भावार्थं _ दे क्षमाशील शुरो ! मैं अन्य सय कामों को छोड
कर शक्ति के अनुसार आपको वन्द करना चाहता ह मीर उसके
अनुसार सिर खुका कर चन्दन करता हुँ ।
४--सुगुर को सुख-शाता-एच्छा ।
इच्छकारी सुहराई सुह-देवसि सुख-तप शरीर
निरावाध सुख-संजम-यात्रा निर्वहते हो जी । स्वा-
मिन् । शाता है १ आहार पानी का लाभ देना जी ।
भावार्थ- मै समण्डा ह कि आपकी रात सु-पूरवंक वीती
होगी, दिन भी खुख-पूर्वफ घीता होगा, भप फी तपश्चर्या सु पूर्वक
पूर्ण हुई दोगी, आपके शरीर को किसी तरद की वाधा न हुई होगी
सौर इससे खाप सयम याचा का अच्छी तर्द निर्वाद करते होगे ।
हि स्वामिन्! कुशल है? मय में प्रार्थना करता कि व्याप आहार
पानी लेकर मुभ् फो धर्मलाम देवे ।
५--अब्सुट्रिओ ८ गुरु-क्ामणा ) सूत्र ।
† इच्छाकारेण संदिसह भगवन् ! अव्भुषटि्ो
ह॑ अन्मितर-देवसिच्ं खामेडं ।
ऋन्वयाथ-- मद मैं 'अर्मितरदेवसिम' दिन फे अन्दर
न. इच्छाकोरेश सदिसद भगदन् ' 'यम्युन्यितोडदमाभ्यस्तरदेगसिक
क्षमयितुम् |
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